घोर अन्धकार में भटक रही
जवानियाँ
घोर अन्धकार में भटक रही
जवानियाँ
सिसक - सिसक – सिसक रही क्यूं ये जवानियाँ
आधुनिकता की अंधी दौड़ में
गम हुई जवानियाँ
शॉर्टकट की बलिबेदी पर बलि
चढ़ रही जवानियाँ
गीत संस्कारों के भाते नहीं
इनको
अपनी ही संस्कृति से मोहभंग
करती ये जवानियाँ
समय बदल गया या विचार बदलते
इनको
आध्यात्मिक विचारों को मुंह चिढ़ाती ये जवानियाँ
“ माय बॉडी माय रुल “ कैसा
ये कुविचार है
परमात्मा के अस्तित्व को
झकझोरती जवानियाँ
पाश्चात्य के गीतों पर थिरक
रही जवानियाँ
भारतीय संगीत से मुंह
चुराती ये जवानियाँ
आधुनिक विचारों की कैसी ये
अंधी दौड़ है
स्वयं के अस्तित्व को
नकारती जवानियाँ
नवजात कूड़े के ढेर पर
कुत्तों का निवाला हो रहे
सामाजिक संस्कारों से दूर
भागती जवानियाँ
घोर अन्धकार में भटक रही
जवानियाँ
सिसक - सिसक – सिसक रही क्यूं ये जवानियाँ
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