Monday 4 February 2019

एक अनजान साया


एक अनजान साया


एक अनजान साया जिसने
बींध दिया मेरे सुस्वप्न को
क्यों कर मिला था उसे
मेरे घर का ही दरवाज़ा

स्वयं को कैद कर लिया मैंने
एक बंद कमरे में
एक अजीब सी कसक का
साथ लिए जी रहा हूँ मैं

बाध्य था यह सोचने को
क्यूं कर लोग दूसरो के
आंसुओं पर अपनी खुशियों का
महल तराशा करते हैं

क्यूं कर उनकी आत्मा
उनके इस कुटिल खेल का
साथ देती

मुझे जगाना ही होगा खुद को
मुझे बाहर निकलना ही 
होगा

उस बंद कमरे से
अपने भीतर साहस का
एक समंदर रोशन करना होगा
उस घने काले साए का
सामना करना होगा

उस कुटिल सोच से
पोषित प्राणी को
सत्य का बोध
कराना ही होगा

चीरना होगा तम को
कमरे से बाहर के प्रकाश से
आँख मिलाना ही होगा
मुझे स्वयं को
बलशाली बनाना ही होगा

क्यूं कर सह जाऊं मैं
उस कुटिल सोच का परिणाम
मुझे आशा का एक दीपक
जलाना ही होगा, जलाना ही होगा


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