एक अनजान साया
एक अनजान साया जिसने
बींध दिया मेरे सुस्वप्न को
क्यों कर मिला था उसे
मेरे घर का ही दरवाज़ा
स्वयं को कैद कर लिया मैंने
एक बंद कमरे में
एक अजीब सी कसक का
साथ लिए जी रहा हूँ मैं
बाध्य था यह सोचने को
क्यूं कर लोग दूसरो के
आंसुओं पर अपनी खुशियों का
महल तराशा करते हैं
क्यूं कर उनकी आत्मा
उनके इस कुटिल खेल का
साथ देती
मुझे जगाना ही होगा खुद को
मुझे बाहर निकलना ही
होगा
उस बंद कमरे से
अपने भीतर साहस का
एक समंदर रोशन करना होगा
उस घने काले साए का
सामना करना होगा
उस कुटिल सोच से
पोषित प्राणी को
सत्य का बोध
कराना ही होगा
चीरना होगा तम को
कमरे से बाहर के प्रकाश से
आँख मिलाना ही होगा
मुझे स्वयं को
बलशाली बनाना ही होगा
क्यूं कर सह जाऊं मैं
उस कुटिल सोच का परिणाम
मुझे आशा का एक दीपक
जलाना ही होगा, जलाना ही
होगा
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