क्यूं कर मेरी कलम को
क्यूं कर मेरे गीतों को भुला दे कोई
क्यूं कर मेरी कलम को सजा दे कोई
मेरी सांसों का कतरा – कतरा कुर्बान
क्यूं कर मेरी साँसों को सज़ा दे कोई
चंद असआर खुदा की इबादत में लिखे मैंने
क्यूं कर मेरी इबादत को भुला दे कोई
बरकरार राखी है मैंने अपने सीने में प्यार की खलिश
क्यूं कर मेरे प्यार को ठुकरा दे कोई
अपनी हर एक आरज़ू को पाकीजगी से सींचा मैंने
क्यूं कर मेरी आरज़ू को फ़ना कर दे कोई
मैंने अपनी चाहत को किया इबादते – खुदा
क्यूं कर मेरी चाहत की राह में रोड़ा बने कोई
अपनी कोशिशों को कर लिया मैंने अमानत मेरी
क्यूं कर मेरी कोशिशों को सजा दे कोई
No comments:
Post a Comment