कुटिल , धूर्त , दुर्जन ,
अधम से परहेज करो
कुटिल , धूर्त , दुर्जन,
अधम से परहेज करो
उत्थान, उन्नयन, विकास सिर
माथे धरो
कोकिल, कोकिला, कलकंठी सी
वाणी वारो
निपुणता, चातुर्य, प्रवीणता
सर माथे धरो
नीरज, अम्बुज, जलज, पंकज सा
पावन रहो
वाटिका, उपवन, कुसुमाकर से
महके रहो
घमंड, अभिमान, दर्प, दंभ से
परहेज करो
निर्मल, पुण्य, पावन
विचारों से खुद को महकाए रहो
नीरद, वारिद, मेघ, जलधर सा
जीवन अमृत बरसाए रहो
प्रणय , स्नेह , अनुराग
अपने जीवन कण - कण में समाये रहो
माथा, ललाट, भाल, शीश को
विशाल करो
मोक्ष, निर्वाण, सद्गति को
जीवन का उपहार करो
मानव, मनुज, नरदेही,
मनुपुत्र सा व्यवहार करो
पुष्पराज , महक, खुशबू सा
खुद को महकाए रहो
कुटिल , धूर्त , दुर्जन,
अधम से परहेज करो
उत्थान, उन्नयन, विकास सिर
माथे धरो
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