आँखें न हों
ऑंखें न हों , पर निगाह हो
साहस न भी हो पर
बहुत सी उम्मीदें हों
पंख न भी हों पर
आसमां पर उड़ने की चाह हो
मंजिल का भान न भी हो
पर सपने अपार हों
गीत न भी हों जुबां पर
गुनगुनाने की चाह हो
ज़ज्बा न हो दिल में फिर भी
मर - मिटने की चाह हो
कलम चाहे टूटी हो तेरी
पर लिखने की चाह हो
दिल में निराशा अपार हो
पर जीने की चाह हो
मिल जायेगी मंजिल तुझको
गर तुझे खुद पर विश्वास हो
चीर देगा तू तूफानों का
सीना
गर हाथ जोश की पतवार हो
ऑंखें न हों , पर निगाह हो
साहस न भी हो पर
बहुत सी उम्मीदें हों
पंख न भी हों पर
आसमां पर उड़ने की चाह हो
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