Saturday, 17 September 2016

डूब जाते हैं बीच मझधार - मुक्तक


डूब जाते हैं बीच मझधार - मुक्तक 

१.

डूब जाते हैं बीच मझघार, जिन्हें खुद पर एतबार नहीं
वो जिन्दगी भी क्या जिन्दगी , जिसे मादरे--वतन से प्यार नहीं

२.

चंद सिक्कों की खातिर , जो ईमान लुटा देते हैं
अपनी जिन्दगी को वो ;नासूर बना लेते हैं

3.

 मर मिटने का ज़ज्बा नहीं , जिनमे वतन की खातिर
उनका न कोई खुदा होता है, न कोई दोस्त यहाँ

4.

खुदा की राह जो चले उसे मंजिल हो नसीब
फिरे जो राह से खुदा की , तो जिन्दगी न मिले

5.

सुबह की ताजगी लाती है , जिन्दगी में रौनके - बहार
जो सुबह देर तक सोये, उसे जिन्दगी कहें क्या कहें

६.


किसी के बारे में बात करें ,तो कया बात करें
अपने ग़म से मिलाएं तो ,मिलाएं कैसे 

7.


फ़िक्र किसी और की मेरी जिन्दगी का ,हिस्सा हो जाए तो अच्छा हो
यूं ही लोगों के गम पीते जिन्दगी ;गुजर जाये तो अच्छा हो.

8.


शुक्रिया उस खुदा का , जिसने जहां बनाया
मकसदे - इंसानियत मेरी जिन्दगी का हिस्सा हो जाए तो अच्छा हो





1 comment:

  1. सुन्दर प्रस्तुति | काबिले तारीफ़ | गुप्ता जी लगे रहिये |

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