गर सत्य ही सत्य है
गर सत्य ही सत्य है तो ,फिर झूठ से रिश्ता कैसा
गर सत्कर्म ही जीवन मर्म है , तो फिर दुष्कर्म से रिश्ता कैसा
'गर जन्नत जीवन का सुख, तो जहन्नुम से फिर नाता कैसा
गर खुदा ही एकमात्र सच तो ,माया मोह से रिश्ता कैसा
'गर सत्य जीवन मर्म तो ,असत्य से फिर रिश्ता कैसा
'गर नश्वर है यह तन तो ,विलासिता का बंधन कैसा
'गर आस्तिकता धर्म मर्म तो ,नास्तिकता से लगाव कैसा
'गर मानवता धर्म मूल तो ,आतंकवाद से रिश्ता कैसा
'गर मानव उत्कर्ष जीवन सत्य तो ,पराक्षाव से नाता कैसा
'गर न्याय मानव धर्म तो ,अन्याय से रिश्ता कैसा
गर सादा जीवन परम सुख तो ,भौतिक जगत से रिश्ता कैसा
'गर स्वाभिमान जीवन मर्म तो ,अहंकार से रिश्ता कैसा
'गर भक्ति मोक्ष मार्ग तो ,माया मोह का बंधन कैसा
'गर सद्चिन्तन जीवन धर्म तो ,कुविचारों से नाता कैसा
गर मन की पावनता चरम सुख तो ,रिश्तों का फिर भय कैसा
'गर मन मंदिर हो जाए तो ,जीवन--मरण का फिर भय कैसा
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