एक छोटी सी जिन्दगी
इस छोटी सी जिन्दगी से , मुहब्बत कर नहीं रहे तो क्यूं
इस छोटी सी जिन्दगी को, नासूर कर रहे तो क्यूं
इस भौतिक जगत में , यूं ही विचर रहे तो क्यूं
खुद से आँखें मिला नहीं , पा रहे तो क्यूं
आध्यात्मिक जगत से रिश्ता , नहीं बना पा रहे तो क्यूं
रिश्तों की एक माला , पिरो पा नहीं रहे तो क्यूं
विलासिता के इस बवंडर से , बाहर आ पा रहे नहीं तो क्यूं
किसी के आंसुओं को अपना ,बना पा नहीं रहे तो क्यूं
एक अनजान मोड़ पर जिन्दगी को ,ला खड़ा किया तो क्यूं
अपने संस्कारों को अपनी अमानत ,बना नहीं पा रहे तो क्यूं
हम खुद को उस खुदा की ,निगाहों में गिरा रहे तो क्यूं
'किसी की ग़मगीन रातों में ,उजाला कर नहीं रहे तो क्यूं
नजरिया हमारा इतना विकृत ,हो गया तो क्यूं
चाहकर भी खुद को संवार ,नहीं पा रहे तो क्यूं
सत्कर्म को जीवन का हिस्सा ,बना पा नहीं रहे तो क्यूं
'जिए जा रहे, बस जिए जा रहे , बस जिए जा रहे तो क्यूं
कुछ ज्यादा की चाह में , सब कुछ लुटा रहे तो क्यूं
जनाब , जिन्दगी को जहन्नुम ,किये जा रहे तो क्यूं
खुदा की दी हुई नायाब , जिन्दगी पर एतबार कर
खुद को बुलंद कर, खुदा की निगाहों में खुद को चश्मो -- चराग कर
सभी कोशिश करें तो जरूर ऐसा हो सकता है | आपने लोगों को जगाने का प्रयास किया आपका प्रयास सराहनीय है |
ReplyDelete