Sunday, 11 September 2016

अश्रुपूर्ण नेत्रों से



अश्रुपूर्ण नेत्रों से

अश्रुपूर्ण नेत्रों से
अपने दिल के टुकड़े
की
जिन्दगी की भीख
मांगतीं
एक अभागी
माँ की
दिल की पीर
जातिवाद का
शिकार हो
समाज के
ठेकेदारों से
बारबार
प्रश्न  करती
क्या यही है
प्रजातंत्र में
जीने की सज़ा








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