Sunday 9 August 2015

क़व्वाली - भाग - एक - कामचोरों का दुनिया मैं अपना नाम है


क़व्वाली

(कामचोरों का दुनिया मैं अपना नाम है)

कामचोरों का दुनिया मैं ,अपना नाम है
जहाँ भी जाते हैं मिलता नहीं सम्मान हैं.

इनकी दुनिया भी ,होती अजब निराली है.
खुद तो कुछ करते नहीं , औरों को देते गाली हैं

इनकी फितरत से ,बच नहीं पाया कोई
कोई भी देता नहीं . इनको कोई काम हैं.

जहाँ भी जाते हैं , ये कामचौरी करते हैं
बुढ़ापे मै , बीमारियों से घिरे रहते हैं

कामचोरों का एक ही स्लोगन हैं
बनों रहो ऐड़े और खूब खाओ पेड़े

एक विचार और दिमाग में इनके आता है 
बनो रहो पगला , और काम करेगा अगला

कामचोरों ने दुनिया को ,बहुत सताया है.
इनकी हर एक सोच मैं छिपी ,कोई धूर्त माया है

कामचोरों की , दुनिया फरेब होती हैं
इनकी हर कौम ,फसाद की जड़ होती है

बड़बोलेपन मैं, इनका न कोई सानी है
इनकी बातों को सुन, होती हमैं हैरानी है

खुदा करे , कामचोरों को अकल आये
ये दुनिया ,फिर से हसीन हो जाए





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