Sunday, 9 August 2015

ग़ज़ल :- तंग दिल लिए इश्क फरमा रहे हैं लोग

गज़ल

तंग दिल लिए ,इश्क फरमा रहे हैं लोग
खुद को इश्क का खुदा ,बतला रहे हैं लोग

आज इश्क ,इम्तलिहानों का समंदर है
जाने क्‍यों वफ़ा से ,घबरा रहे हैं लोग

इश्क गर खुदा की ,इबादत का है नाम
इस डइबादत से फिर क्‍यों ,कतरा रहे हैं लोग

कसमें खाते हैं ,चाँद तोड़ लाने की
इश्क को यूं ही बदनाम ,किये जा रहे हैं लोग

क़्यामत की हद तक ,इंतज़ार का करते हैं वादा
अगले ही पल किसी और से रिश्ता ,बना रहे हैं लोग

गुमराह होती ख्वाहिशों का समंदर हो गया ,आज का इश्क
खुद के ही खिलाफ साज़िश ,किये जा रहे हैं लोग

कुबूल नहीं खुद को इश्क में ,कुर्बान कर सकें
कुदरत से नाफ़रमानी न जाने क्यों ,किये जा रहे हैं लोग

क्रयामत तक इश्क में निभाने का वादा ,कहते हैं करेंगे
एक दूसरे पर तोहमत न जाने क्‍यों लगा रहे हैं लोग

मामला अब जा पहुंचा है उस खुदा के मातहत
एक दूसरे से अब नज़रें चुरा रहे हैं लोग

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