Sunday, 16 August 2015

चंद रोज़ हुए उनसे मुलाकात हुई

चंद रोज हुए उनसे कस मुलाकात हुई
आँखों से आंखें मिर्ली , दिल से दिल
की बात हुई
कुछ हम बोले , कुछ वो बोले
यहीं से हमारी मुहब्बत की शुरूआत हुई




उनकी सादगी पर हम हए थे फ़िदा
दिल से दिल को राह मिला, नजरें
हमारी चार हुई
बेफिक्र थे वॉ उनको हमसे कुछ न था.
गिला
उनको हमारी मुहब्बत रास न आई ,
जाने कया बात हुई 




चराग महब्बत का जलाएं बैठे थे हम
सुबह हुई, शाम हुई, जाने क्या बात हुई
उनका सन्देश मेला, हमारी मजबूरी हैं
हम ये सोचते रहे , वो क्यों पराई हुई




लिखे थे ख़त हमने भी मुहब्बत के उनको
जवाब मिला न हमको , जाने क्या बात हुई
इसमें उनकी भी कोई खता नहीं दिखती
हमको
हमें उम्मीद न थी , मुहब्बत हमारी किसी
को रास न आई कर

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