Sunday 16 August 2015

मशाल जलाओ कि बहुत अँधेरा है

मशाल जलाओ कि बहुत अन्धेरा है
संगीत की रागिनी सुनाओ कि हुआ सवेरा है
आये हैं वो हमारी महफ़िल में हम
खुशकिस्मत हैं
सुनाओ संगीत कि लगा संगीत का मेला है




नदियाँ यूं ही कल - कल नहीं करतीं
जंगल यूं ही आबाद नहीं होते
मंजिल मिलती नही उनको 
जिनके हौसले बुलंद नहीं होते



अपने जोश को जान दो
अपने प्रयासों को परवान दो
मंजिलें यूं ही आसां नहीं होतीं
अपने इरादों में जान दो



अपनी कोशिश में पवित्रता लाओ
अपने प्रयासों को अपना मुस्तकबिल बनाओ
अपनी कोशिश को खुदा की इबादत समझो
अपने प्रयासों में पाकीज़गी लाओ

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