खुद को बुलंद करो , अपने विचारों को पवित्र कर
लो
खुद का गौरव बढ़ाओ , अपने विचारों को मौलिक
कर लो
वेदना से बाहर आओ , खुद को संयमित कर लो
लक्ष्य आसां नहीं होता , खुद पर भरोसा कर लो
वो आग ही क्या जिसमें ताप ही न हो
वो दुआ ही क्या जिसमें कोई तासीर न हो
हुए हैं बहुत से रचनाकार इस दौर में भी
वो लेखन ही क्या जिसमें कोई विचार न हो
किसी के घर में झांकना होता है गुनाह
किसी के “पर” काटना होता है गुनाह
किसी की जुस्तजू यूं ही नहीं करते
बगैर प्यार किये , किसी का प्यार पाना होता
है गुनाह
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