जानो है अपने गाँव
जानो है अपने गाँव रे
भैया, जानो है अपने गाँव रे
जा शहर ने न प्रीत
निभाई का से करूँ मै प्रीत रे भैया
जानो है अपने गाँव रे
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सरकार की दिखे उदासी,
अँखियाँ रोवें प्यासी - प्यासी
कारोबार की नहीं है
छाँव रे भैया , काम को हो रहो अभाव रे भैया
जानो है अपने गाँव
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कूटनीति चल रहे हैं
नेता , हमको झोंको सड़क पर
रेलगाड़ी चलती पटना
को, पहुंचे बनारस रे भैया
जानो है अपने गाँव
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खाने को न मिले है
भोजन , पीने को नहीं पानी
अजब मुश्किल पडी है
जिन्दगी , रोवे है जिंदगानी रे भैया
जानो है अपने गाँव
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सपने अब सब हुए
पराये, तन पटरी पर बिखरे
इंसानियत भी आंसू
बहाए , गरीबन की आँखों से छलके रे भैया
जानो है अपने गाँव
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मटर पनीर की चाह नहीं
है , रूखा – सूखा कुछ मिल जाए
सरकारी रसोई का पता
बता दो , भूख मिटा लें भैया
जानो है अपने गाँव
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दुबके नेता घर में
सारे , मौत का भय है सताए
नेतागिरी पर ख़तरा
कैसा , जो धर्म की चाबुक चलाये रे भैया
जानो है अपने गाँव
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मेरी माँ मेरी राह
देखती , बहना करती इंतज़ार
चलनो है कई सौ कोस ,
पैरन छालों के साथ रे भैया
जानो है अपने गाँव
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Beautiful poem sir👍
ReplyDeleteशुक्रिया जी
Deleteदर्दनाक,दिल को द्रवित करने वाली, समसामयिक रचना।👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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