Sunday, 31 May 2020

जानो है अपने गाँव


जानो है अपने गाँव

जानो है अपने गाँव रे भैया, जानो है अपने गाँव रे
जा शहर ने न प्रीत निभाई  का से करूँ मै प्रीत रे भैया

जानो है अपने गाँव रे ....................

सरकार की दिखे उदासी, अँखियाँ रोवें प्यासी  - प्यासी
कारोबार की नहीं है छाँव रे भैया , काम को हो रहो अभाव रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

कूटनीति चल रहे हैं नेता , हमको झोंको सड़क पर
रेलगाड़ी चलती पटना को, पहुंचे बनारस रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................
खाने को न मिले है भोजन , पीने को नहीं पानी
अजब मुश्किल पडी है जिन्दगी , रोवे है जिंदगानी रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

सपने अब सब हुए पराये, तन पटरी पर बिखरे
इंसानियत भी आंसू बहाए , गरीबन की आँखों से छलके रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

मटर पनीर की चाह नहीं है , रूखा – सूखा कुछ मिल जाए
सरकारी रसोई का पता बता दो , भूख मिटा लें  भैया

जानो है अपने गाँव ...................

दुबके नेता घर में सारे , मौत का भय है सताए
नेतागिरी पर ख़तरा कैसा , जो धर्म की चाबुक चलाये रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

मेरी माँ मेरी राह देखती , बहना करती इंतज़ार
चलनो है कई सौ कोस , पैरन छालों के साथ रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

4 comments:

  1. दर्दनाक,दिल को द्रवित करने वाली, समसामयिक रचना।👌👌👌

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