Sunday 17 May 2020

अवसाद के क्षणों में भी


अवसाद के क्षणों में भी

अवसाद के क्षणों में भी
खुशियों के पल की आस जगा लेता है ये मन
अभाव के दौर में भी
खुशनुमा पलों की आस में जी लेता है ये मन

रेगिस्तान में भी पानी की तलाश करने 
खुद पर एतबार कर लेता है ये मन
पतझड़ के आने की भी आहट से
खुद को रोमांचित कर लेता है ये मन

दूसरों की पीर को
अपनी पीर बना लेता है ये मन
एक उदास शाम के साए में भी
दो घूँट तलाश लेता है ये मन

बंज़र धरती पर भी फूलों का उपवन रोशन करने को
 लालायित हो जाता है ये मन
सपनों की दुनिया में इच्छाओं की
 गाड़ी दौड़ा लेता है ये मन

कभी ये गाड़ी सरपट दौड़ती
तो कभी छुक  - छुक करती
खुली आँखों से जागते हुए भी
सुखद अनुभूति कर लेता ये मन

सपनों की ड्रीमगर्ल को पाने
सफ़ेद घोड़े पर सवार होता ये मन
तो कभी जीवन के रेगिस्तान में
एक बूँद प्रेम को तलाशता ये मन

कभी भावनाओं में बह निकलता
तो कभी जिद का समंदर हो जाता
कभी सत्य की खोज में वैरागी हो जाता
तो कभी सत्ता का विस्तार हो जाता

कभी सपनों के अथाह सागर में
गोते लगाता ये मन  
तो कभी सत्य से परिचित होकर भी
खुद को नहीं मना पाता ये मन

अवसाद के क्षणों में भी
खुशियों के पल की आस जगा लेता है ये मन
अभाव के दौर में भी
खुशनुमा पलों की आस में जी लेता है ये मन

रेगिस्तान में भी पानी की तलाश करने 
खुद पर एतबार कर लेता है ये मन
पतझड़ के आने की भी आहट से
खुद को रोमांचित कर लेता है ये मन

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