Sunday 17 May 2020

कहीं किसी आसमां पर


कहीं किसी आसमां पर

कहीं किसी आसमां पर लिखा होगा मेरी मंजिल का पता
मैं उसी आसमां को कर लूंगा अपनी मंजिल का हमसफ़र

बढ़ चलूँगा मैं अपने हौसलों का साथ लिए
एक अदद ख्वाहिश के साथ उस आसमां की ओर

रोक न पाएगी कोई भी दीवार मुझे बढ़ने से
सकारात्मक सोच को कर लूंगा अपनी धरोहर

अपने प्रयोजन को अपने मनोयोग का उदेश्य बनाकर
अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो चलूँगा

मुझे सफल होना ही है इस विचार को कर लूंगा अपनी पूँजी
मुसीबतों , बाधाओं को अपनी राह के मित्र बना लूँगा

क्यूं कर विश्राम को अपनी राह का  रोड़ा बना लूँ
जब तक मंजिल नसीब न हो मुझे अविराम बढना ही होगा

सफल होने के एहसास को अपनी ऊर्ज़ा स्रोत बनाकर
अपनी कोशिशों  को मुझे एक नया आयाम देना ही होगा

मुझे उम्मीद है मैं अपनी मंजिल एक दिन हासिल कर लूँगा
फिर करूंगा रोशन एक आशियाँ उस आसमां पर जो है मेरी मंजिल का पता



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