Sunday, 17 May 2020

मजदूर हूँ मजबूर हूँ


मजदूर हूँ मजबूर हूँ

मजदूर हूँ मजबूर हूँ इस देश की संतान हूँ
सरकार को समझना होगा मैं भी एक इंसान हूँ

एक निवाला रोटी नहीं , ने ही पीने को पानी है
कोरोना की इस त्रासदी में , ये कैसी जिंदगानी है

घर के बेटो को पराया कर दिया सरकार ने
परदेशी बेटों को बिठाया सिर माथे सरकार ने

हमसे चलता है देश , ये सरकार को समझाइये
मानव अधिकार संस्थाएं होश में तो आइये

क्यूं कर एक गरीब का  बच्चा जन्मा सड़क पर
टुकड़ों  - टुकड़ों में बाँट गया , एक मजदूर सड़क पर

पीर दिखती नहीं किसी को, कोई तरस तो खाइए
मजदूर हूँ मजबूर हूँ , इंसानियत के वास्ते जागिये

ये जिन्दगी का कैसा सफ़र , मौत से बदतर
नेता सुरक्षित महलों में , गरीब सब मर जाइए

न सर पर छत न पेट में रोटी , जाएँ तो जाएँ कहाँ
गरीब की बद्दुआ न लग जाए , होश में तो आइये

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