मजदूर हूँ मजबूर हूँ
मजदूर हूँ मजबूर हूँ इस देश की संतान हूँ
सरकार को समझना होगा मैं भी एक इंसान हूँ
एक निवाला रोटी नहीं , ने ही पीने को पानी है
कोरोना की इस त्रासदी में , ये कैसी जिंदगानी है
घर के बेटो को पराया कर दिया सरकार ने
परदेशी बेटों को बिठाया सिर माथे सरकार ने
हमसे चलता है देश , ये सरकार को समझाइये
मानव अधिकार संस्थाएं होश में तो आइये
क्यूं कर एक गरीब का बच्चा
जन्मा सड़क पर
टुकड़ों - टुकड़ों में बाँट
गया , एक मजदूर सड़क पर
पीर दिखती नहीं किसी को, कोई तरस तो खाइए
मजदूर हूँ मजबूर हूँ , इंसानियत के वास्ते जागिये
ये जिन्दगी का कैसा सफ़र , मौत से बदतर
नेता सुरक्षित महलों में , गरीब सब मर जाइए
न सर पर छत न पेट में रोटी , जाएँ तो जाएँ कहाँ
गरीब की बद्दुआ न लग जाए , होश में तो आइये
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