Sunday 31 May 2020

मजदूरों की घर से दूरी


मजदूरों की घर से दूरी


मजदूरों की घर से दूरी , ऊपर से ये कैसी मजबूरी
कोई राह दिखाओ तो , घर तक हमें पहुँचाओ तो

दो वक़्त की रोटी मिल जाये , और घर जाने को वाहन
पीर हमारी सुन लो कोई, घर तक हमें पहुँचाओ तो

भाई छोटे , बहन छूटी , रिश्तों का संसार भी छूटा
इस भयावह त्रासदी में , इंसानियत की राह सजाओ तो

पैरों के छले फुट  - फूटकर , पीर भयावह बन रहे
बच्चों की भूखी अंतड़ियां रोयें, कोई भूख मिटाओ तो

टुकड़े  - टुकड़े यह तन होकर, सड़कों  पर बिखर रहा
अपने ही वतन में हम रहते, पराया न हमें बताओ तो

पीर सही हमने जो दिल पर , उसको कैसे भुलाएँगे
वोट दिया था हमने तुमको, हमें यूं न झुठलाओ तो

लखपतियों को प्लेन में बिठाकर , लाती हमरी सरकार
हम भी हैं इस देश के बच्चे , हमें यूं न न लजाओ तो

अब हमें जागना होगा, खुद को अपना खुदा बनाना होगा
राजनीति का मोहरा थे हम , अब नया राष्ट्र बनाना होगा

राजनीति के ठेकेदारों को , अब हमें सबक सिखाना होगा 
इन सत्ता के लोभियों को , अब कुर्सी से गिराना होगा

भूख , प्यास और मौतों का बदला इनसे लेना होगा
नेताओं की कुटिल चालों का माकूल जवाब बनाना होगा

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