मजदूरों की घर से
दूरी
मजदूरों की घर से
दूरी , ऊपर से ये कैसी मजबूरी
कोई राह दिखाओ तो ,
घर तक हमें पहुँचाओ तो
दो वक़्त की रोटी मिल
जाये , और घर जाने को वाहन
पीर हमारी सुन लो
कोई, घर तक हमें पहुँचाओ तो
भाई छोटे , बहन छूटी
, रिश्तों का संसार भी छूटा
इस भयावह त्रासदी में
, इंसानियत की राह सजाओ तो
पैरों के छले
फुट - फूटकर , पीर भयावह बन रहे
बच्चों की भूखी
अंतड़ियां रोयें, कोई भूख मिटाओ तो
टुकड़े - टुकड़े यह तन होकर, सड़कों पर बिखर रहा
अपने ही वतन में हम
रहते, पराया न हमें बताओ तो
पीर सही हमने जो दिल
पर , उसको कैसे भुलाएँगे
वोट दिया था हमने
तुमको, हमें यूं न झुठलाओ तो
लखपतियों को प्लेन
में बिठाकर , लाती हमरी सरकार
हम भी हैं इस देश के
बच्चे , हमें यूं न न लजाओ तो
अब हमें जागना होगा,
खुद को अपना खुदा बनाना होगा
राजनीति का मोहरा थे
हम , अब नया राष्ट्र बनाना होगा
राजनीति के ठेकेदारों
को , अब हमें सबक सिखाना होगा
इन सत्ता के लोभियों
को , अब कुर्सी से गिराना होगा
भूख , प्यास और मौतों
का बदला इनसे लेना होगा
नेताओं की कुटिल
चालों का माकूल जवाब बनाना होगा
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