Sunday, 31 May 2020

थोड़ा है थोड़े की जरूरत है


थोड़ा है थोड़े की जरूरत है

थोड़ा है थोड़े की जरूरत है
पीड़ा है मरहम की जरूरत है

सपने हैं आसमां की जरूरत है
मंजिल है साहिल की जरूरत है

रिश्ते हैं अपनेपन की जरूरत है
मिलते हैं चाहत की जरूरत है

गीत है संगीत की जरूरत है
मीत है प्रीत की जरूरत है

किस्से है किरदार की जरूरत है
खिलते हैं खुशबू की जरूरत है

कहते हैं कहने की जरूरत है
अन्धेरा है उजाले की जरूरत है

खोया है पाने की चाहत है
जीवन है जीने की जरूरत है

कहना है सुनने की जरूरत है
रोता हूँ हंसने की चाहत है

संगीत है सुनने की जरूरत है
हंसता हूँ खिलने की चाहत है
संभालता हूँ जीने की चाहत है
हौसला हूँ जीतने की चाहत है


जानो है अपने गाँव


जानो है अपने गाँव

जानो है अपने गाँव रे भैया, जानो है अपने गाँव रे
जा शहर ने न प्रीत निभाई  का से करूँ मै प्रीत रे भैया

जानो है अपने गाँव रे ....................

सरकार की दिखे उदासी, अँखियाँ रोवें प्यासी  - प्यासी
कारोबार की नहीं है छाँव रे भैया , काम को हो रहो अभाव रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

कूटनीति चल रहे हैं नेता , हमको झोंको सड़क पर
रेलगाड़ी चलती पटना को, पहुंचे बनारस रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................
खाने को न मिले है भोजन , पीने को नहीं पानी
अजब मुश्किल पडी है जिन्दगी , रोवे है जिंदगानी रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

सपने अब सब हुए पराये, तन पटरी पर बिखरे
इंसानियत भी आंसू बहाए , गरीबन की आँखों से छलके रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

मटर पनीर की चाह नहीं है , रूखा – सूखा कुछ मिल जाए
सरकारी रसोई का पता बता दो , भूख मिटा लें  भैया

जानो है अपने गाँव ...................

दुबके नेता घर में सारे , मौत का भय है सताए
नेतागिरी पर ख़तरा कैसा , जो धर्म की चाबुक चलाये रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

मेरी माँ मेरी राह देखती , बहना करती इंतज़ार
चलनो है कई सौ कोस , पैरन छालों के साथ रे भैया

जानो है अपने गाँव ...................

बीत जाएगा ये दौरे - त्रासदी


बीत जाएगा ये दौरे  - त्रासदी

बीत जाएगा ये दौरे – त्रासदी
रोशन होगी फिर एक नयी सुबह

स्वयं को संभालना सीखना होगा
स्वयं को बनाना होगा ऊर्जावान

तिनका  - तिनका जिन्दगी को संजोना होगा
बूँद  - बूँद कर आशियाँ को सजाना होगा

क्यूं कर मानवता हो जाए शर्मशार
इंसानियत का एक कारवाँ सजाना होगा

मरहम होना होगा एक दूसरे का
पीर एक दूसरे की मिटाना होगा

इस बुरे दौर में रखना होगा संयम
स्वयं को शक्तिवान बनाना होगा

क्यूं कर रिश्तों में संदेह को मिले स्थान
रिश्तों का एक कारवाँ सजाना होगा

उस खुदा पर करना होगा एतबार
इबादत का एक समंदर सजाना होगा

कोरोना के इस अन्धकार से बाहर आयेंगे एक दिन
मिलकर इस वायरस को हराना होगा

भूख प्यास मिटानी होगी गरीबों की
इनके लिए लंगर सजाना होगा

मिलकर चलेंगे तो पायेंगे मंजिल
एक  - दूसरे पर विश्वास जताना होगा

जीते हैं हमने पहले भी ऐसे युद्ध बहुत
कोरोना को भी हमने  मिलकर हराना होगा



ये कैसी पनघट की डगर


ये कैसी पनघट की डगर

ये कैसी पनघट की डगर ,जिसका न कोई हमसफ़र 
चल पड़े घर की ओर , सूझती नहीं कोई डगर

जिसने पूछा हाल मेरा, वो हो गया मेरा रहबर
जिसको न मिला रहबर , वो भटक रहा दर  - दर

सड़कों पर हैं  बच्चे जन्मे , ट्रेनों ने भी सही ये पीड़ा
अभिमानी नेता न जाग रहे, किसे सुनाएँ विपदा

सड़कें लहू की हो रही प्यासी , ट्रेन भी जुल्म ढहाए
किसको रोयें किसे न रोयें , कोई तो घर पहुंचाए

पैदल जंग बहुत हैं हारे, कुछ भूखन के मारे
नेतन से अब हुआ मोहभंग , पड़ेंगे वोटन के लाले

पार्टी फण्ड के दानी अब सब छुपे कहाँ  हैं सारे
मानवता चीख  - चीख पुकारती, निकलो नेताओं के प्यादे

धर्म के ठेकेदारों के अब दर्शन नहीं हैं होते
धर्म का डंका पीटने वाले, अब हैं घरों में सोते

मानव बदला मानवता बदली , मानव हुआ अनाथ
सबके दाता राम तो फिर हमरे कौन हैं नाथ

माँ बहनों का प्यार, आ रहा याद हम सबको
कष्ट की इस त्रासदी में , कोई बचाओ हमको

कोरोना की मार ने सबसे ज्यादा हमें रुलाया
राजनीति के ठेकेदारों से रूबरू हमें कराया

अपने ही देश में


अपने ही देश में

अपने ही देश में मुझको पराया कर दिया
न जाने क्यूं मुझको बेगाना कर दिया

कोरोना की इस त्रासदी में लोगों ने छला है मुझको
मजदूर हूँ क्यूं मुझको मजबूर कर दिया

सजाता हूँ संवारता हूँ , मैं ही शहर को
न जाने क्यूं इस शहर ने बेगाना कर दिया

दो वक़्त की रोटी के लिए जीते हैं सब
मैंने दो रोटी मांगकर , क्या गुनाह कर दिया

पैदल चलने की पीड़ा को , कैसे बयां करूं मैं
सरकार ने इंसानियत का चीरहरण कर दिया

पीर अपने दिल की सुनाएँ क्या और किसे
कुर्सी के मतवालों से दिल में खंजर घोंप दिया

क्यूं जन्म ले रहे हैं बच्चे सड़क पर
मानवता को इन नेताओं ने तार  - तार कर दिया

सोचकर निकले थे पहुंचेंगे अपने गाँव
मंजिल से पहले ही यमराज ने प्राण हरण कर लिया

अपने ही देश में हम प्रवासी हो गए
शायद हम इंग्लैंड के निवासी हो गए
गर ऐसा हो जाता तो हम भी प्लेन से आते
यूं सड़क पर ट्रकों से कुचले न जाते

नारी छवि


नारी छवि

हौले  - हौले बदल रही है नारी छवि
हौले  - हौले निखर रहे हैं हौसले
हौले  - हौले आसमां की ओर बढ़ती
हौले  - हौले खुद से प्यार करती

हौले  - हौले कर्तव्यपथ पर अग्रसर होती
हौले  - हौले स्वयं को संवारती
हौले  - हौले चीरती कुप्रथाओं की बेड़ियाँ
हौले  - हौले स्वयं का विस्तार होप्ती

हौले  - हौले अपने आसमां का विस्तार करती
हौले  - हौले संस्कारों को पल्लवित करती
हौले  - हौले संस्कृति का आधार होती
हौले  - हौले अँधेरे से उजाले की ओर अग्रसर होती

हौले  - हौले लांघती घर की दहलीज स्वयं को गर्वित करने
हौले  - हौले अपने अस्तित्व का बोध करती
हौले  - हौले जीवन में सामंजस्य स्थापित करती
हौले  - हौले स्वयं का अभिमान होती

हौले  - हौले स्वयं को समाज में स्थापित करती
हौले  - हौले बढ़ चल रही दूर आसमां की ओर
हौले  - हौले स्वयं के होने का एहसास करती
 हौले  - हौले नारी के चश्मे से बाहर आती नारी

हौले  - हौले बदल रही है नारी छवि
हौले  - हौले निखर रहे हैं हौसले
हौले  - हौले आसमां की ओर बढ़ती
हौले  - हौले खुद से प्यार करती

सपनों की नगरी में


सपनों की नगरी में

सपनों की नगरी में
इक मेरा भी सपना
छोटा सा , नन्हा सा
कुसुमित पुष्प सा

कोमल पंखुड़ियों , कुछ काँटों के
सानिध्य में पल्लवित होता
मेरे सत्प्रयासों की दिशा होता

थोड़ा सा आसमान
मेरे सपनों की चाहत
अकर्म के मायाजाल से परे
मेरा सपना

स्वयं को सींचता , पल्लवित करता
विशाल ह्रदय से सानिध्य में
सकारत्मक सोच को धरोहर करता

सत्कर्म की कर्मभूमि पर
समंदर की लहरों सा
स्वयं को संयमित करता

मेरे सपनों को थकान से क्या लेना
इसे तो मंजिल पर है रुकना

मेरे सपनों का रूप सलोना
प्यारा  - प्यारा बौना – बौना

सपना तो सपना होता है
सच हो तो अपना होता है

सपनों की नगरी में
इक मेरा भी सपना
छोटा सा , नन्हा सा
कुसुमित पुष्प सा