Friday 29 July 2016

चाह मुझे मैं खिलूँ पुष्प सा

चाह मुझे मैं खिलूँ पुष्प सा


चाह मुझे मैं खिलैँ पुष्प सा
खुद पर मैं इठलाऊँ
जग को खुशबू से नहलाऊँ
खुशबू का समंदर हो जाऊं
भंवरों को मैं खूब रिझाऊँ
उपवन को मैं महकाऊं
रंग--रंग के पुष्प बनूँ मैं
प्रभु चरणों में बिछ जाऊं
सुन्दर नारी की वेणी होकर
'प्रियतम को मैं रिझाऊँ
शहीदों के चरणों में बिछकर
पावनता की सीमा हो जाऊं
चाह मुझे मैं खिलूँ पुष्प बन
गुरु चरणों में बिछ जाऊं
चाह मुझे मैं जियूं लोक हित
सलिला सा पावन कहलाऊँ




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