चाह मुझे मैं खिलूँ पुष्प सा
चाह मुझे मैं खिलैँ पुष्प सा
खुद पर मैं इठलाऊँ
जग को खुशबू से नहलाऊँ
खुशबू का समंदर हो जाऊं
भंवरों को मैं खूब रिझाऊँ
उपवन को मैं महकाऊं
रंग--रंग के पुष्प बनूँ मैं
प्रभु चरणों में बिछ जाऊं
सुन्दर नारी की वेणी होकर
'प्रियतम को मैं रिझाऊँ
शहीदों के चरणों में बिछकर
पावनता की सीमा हो जाऊं
चाह मुझे मैं खिलूँ पुष्प बन
गुरु चरणों में बिछ जाऊं
चाह मुझे मैं जियूं लोक हित
सलिला सा पावन कहलाऊँ
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