मन मेरे अब रो पड़ो तुम
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
चीर न पाओगे तम को
पीर बढ़ती ही रहो तुम
पूछ लो सत्कर्म से
अब कहाँ बसते हो तुम
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
रोज एक नई निर्भया से
हो रहे परिचित हो तुम
देश भक्त नेता कहाँ अब
नया जहां कैसे बसाओगे तुम
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
टूटती आशाओं के संग
मंजिल कहाँ पाओगे तुम
डूबती तन्हाइयों में
कैसे सुकूँ पाओगे तुम
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
सत्य की बातें करें क्या
झूठ की महिमा निराली
डूबते मझधार में
किनारे कहाँ पाओगे तुम
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
बयाँ क्या करूं मैं किसको
दुखड़ा सुनाऊँ अपना
है सभी की पीर अपनी
किसको रोना सुनाऊँ अपना
मन मेरे अब रो पड़ो तुम
नेत्र मेरे अब बह चलो तुम
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