हिमालय कर रहा हुंकार है
हिमालय कर रहा हुंकार है
मानव ने किया उस पर प्रहार है
कभी ग्लेशियर का टूटना
कभी बाढ़ का दिखता प्रभाव है
कभी आसमानी बिजली चीखती
कभी सुनामी का प्रचंड वार है
कोरोना ने सारी सीमाएं तोड़ दीं
मानव अपने किये पर शर्मशार है
कभी ज्वालामुखी है चीखता
कहीं गृहयुद्ध की मार है
सुपारी किलर खुले आम घूमते
चीरहरण की घटनाएं बेशुमार हैं
संवेदनाएं दम हैं तोड़तीं
मानवता खुद पर शर्मशार है
चीख – पुकार का ये कैसा दौर है
हर एक शख्स हुआ लाचार है
मानव जीवन हुआ कुंठाओं का समंदर
इंसानियत हुई बेज़ार है
रिश्ते निभाने का अब चार्म न रहा
बिखरा – बिखरा सा मानव का संसार है
हिमालय कर रहा हुंकार है
मानव ने किया उस पर प्रहार है
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