Thursday, 29 April 2021

हिमालय कर रहा हुंकार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

मानव ने किया उस पर प्रहार है

 

कभी ग्लेशियर का टूटना

कभी बाढ़ का दिखता प्रभाव है

 

कभी आसमानी बिजली चीखती

कभी सुनामी का प्रचंड वार है

 

कोरोना ने सारी सीमाएं तोड़ दीं

मानव अपने किये पर शर्मशार है

 

कभी ज्वालामुखी है चीखता

कहीं गृहयुद्ध की मार है

 

सुपारी किलर खुले आम घूमते

चीरहरण की घटनाएं बेशुमार हैं

 

संवेदनाएं दम हैं तोड़तीं

मानवता खुद पर शर्मशार है

 

चीख – पुकार का ये कैसा दौर है

हर एक शख्स हुआ लाचार है

 

मानव जीवन हुआ कुंठाओं का समंदर

इंसानियत हुई बेज़ार है

 

रिश्ते निभाने का अब चार्म न रहा

बिखरा – बिखरा सा मानव का संसार है

 

हिमालय कर रहा हुंकार है

मानव ने किया उस पर प्रहार है

 

No comments:

Post a Comment