कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा
कभी
नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
चिंतन
का समंदर , रोशन होता रहा
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
विचारों
की गंगा बह निकली, कलम से मेरी
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
कभी
गीत, कभी
ग़ज़ल , कभी कविता और कभी शेर
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
नवजीवन
की ओर मैं अगसर होता रहा
वो
सँभालते रहे और मैं बढ़ता रहा
दिल
की आवाज़ , कलम रोशन करती रही मेरी
उन्हे
आभास होता रहा , मैं बयाँ करता रहा
किसी
के गम, किसी
की पीर , मेरी कलम का हिस्सा हुए
वो
मुस्कुराते रहे , मैं गम चुराता रहा
कभी
नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
चिंतन
का समंदर , रोशन होता रहा
वो
पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा
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