Sunday, 4 April 2021

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

 

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

चिंतन का समंदर , रोशन होता रहा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

विचारों की गंगा बह निकली, कलम से मेरी

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

कभी गीत, कभी ग़ज़ल , कभी कविता और कभी शेर

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

नवजीवन की ओर मैं अगसर होता रहा

वो सँभालते रहे और मैं बढ़ता रहा

 

दिल की आवाज़ , कलम रोशन करती रही मेरी

उन्हे आभास होता रहा , मैं बयाँ करता रहा

 

किसी के गम, किसी की पीर , मेरी कलम का हिस्सा हुए

वो मुस्कुराते रहे , मैं गम चुराता रहा

 

कभी नहीं चढ़ा, शोहरत का नशा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

 

चिंतन का समंदर , रोशन होता रहा

वो पढ़ते रहे, मैं लिखता रहा

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