Thursday, 29 April 2021

अपनी कलम को न विश्राम दो

 

अपनी कलम को न विश्राम दो

 

 अपनी कलम को न विश्राम दो

कुछ और नए पैगाम दो

सोये हुओं को नींद से जगाओ

चिंतन को न विश्राम दो

 

सपनों को कलम से सींचो

मंजिलों का पैगाम दो

भटक गए हैं  जो दिशा से

उन्हें सत्मार्ग का पैगाम दो

 

जो चिरनिद्रा में लीन  हैं

उन्हें  सुबह के सूरज का पैगाम दो

दिशाहीन हो गए हैं जो

उन्हें सही दिशा का ज्ञान दो

 

विषयों का कोई अंत नहीं है

कलम से उसे पहचान दो

चीरहरण  पर खुलकर लिखो

कुरीतियों पर ध्यान दो

 

बिखरी  - बिखरी साँसों को

एक नया पैगाम दो

जिन्दगी एक नायाब तोहफा

ऐसा कोई पैगाम दो

क्यूं कर टूटे रिश्तों की डोर

सामाजिकता का पैगाम दो

रिश्तों की मर्यादा हो सलामत

ऐसा कुछ पैगाम दो

 

अपनी कलम को पोषित करो

उत्तम विचारों की पूँजी दो

चीखती बुराइयों पर प्रहार कर

समाज को पैगाम दो

 

चिंतन का एक सागर हो रोशन

अपनी कलम को इसका भान दो

पीर दिलों की मिटाओ

मुहब्बत का पैगाम दो

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