Thursday, 29 April 2021

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

 

पीर अब दिल की मिटाता नहीं  कोई

हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

 

रिश्तों की कोंपल अब,  फूल बन खिलती नहीं

जो हुआ करते थे अपने , वो आज दुश्मन हो गए

 

जी पर किया भरोसा , वो भरोसे के लायक न रहे

होठों पर मुस्कान , बगल में छुरी लिए खड़े हो गए

 

कोरोना ने उड़ा रखी है , सभी की नींद

इस त्रासदी में सभी रिश्ते , बेमानी हो गए

 

संवेदनाएं स्वयं को शून्य में खोजतीं

गली – चौराहे खून से सराबोर हो गए

 

नेताओं पर नहीं पड़ती कोरोना की मार

गरीब सभी अल्लाह को प्यारे हो गए

 

नवजात बच्चियां भी आज नहीं हैं सलामत

घर – घर चीरहरण के किस्से हो गए

 

सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

 

पीर अब दिल की मिटाता नहीं  कोई

हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

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