Tuesday, 18 April 2017

हम ऐसे दीवाने हैं क्यों

हम ऐसे दीवाने हैं क्यों

हम ऐसे दीवाने हैं क्यों , हम ऐसे मस्ताने हैं क्यों
दिल की पीर छुपाते फिरते, हम ऐसे परवाने हैं क्यों

पीर पराई हमें न सूझे, हम इतने बेगाने हैं क्यों
हम इस जग मैं अज्ञानी, खुद पर हम इतराते हैं क्यों

'पर उपकार से सदा भागते , हम में ये दुर्गुण है क्‍यों
आकर्षण में उलझे - उलझे , विलासिता के दीवाने हैं क्यों

 निश्छल जीवन हमें न भाता, निर्जीव से जी रहे क्यों
'लालसा जीवन का गहना, हममे संयम नहीं है क्यों

खुद से हमको प्रेम नहीं है , खुद को हम भटकाते हैं क्यों
वर्जित कार्य सदा हम करते , जीवन मैं विश्राम नहीं क्यों

अमृत की अभिलाषा नहीं, विष के दलदल में उलझे क्यों
उत्सर्ग मार्ग से नहीं है नाता , धर्म मार्ग पर बढ़ते नहीं क्यों

निर्दोष कर्म हम नहीं जानते, हम इतने उलझे - उलझे क्यों
मंगल काज नहीं हैं भाते, हममे पावनता नहीं क्यों

चाँद हमारी चाहत है , तारों से दिल लगाते नहीं क्यों
जीवन मैं विश्राम नहीं है , सदा भागते रहते हैं क्यों

हम ऐसे दीवाने हैं क्यों , हम ऐसे मस्ताने हैं क्यों
दिल की पीर छुपाते फिरते, हम ऐसे परवाने हैं क्यों

पीर पराई हमें न सूझे, हम इतने बेगाने हैं क्यों
हम इस जग मैं अज्ञानी, खुद पर हम इतराते हैं क्यों




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