Tuesday 18 April 2017

अकेले में खिलना और महकना सभी को नहीं आता

अकेले में खिलना और महकना हर किसी को नहीं आता

अकेले में खिलना और महकना , हर किसी को नहीं आता
खिलता और महकता वही , जो खुद को कोशिशों के सागर में  डुबोता

जीवन से मिलती जुलती है , लहरों की कहानी
कहीं खुशियों का ज्वार , तो कहीं ग़मों का भाटा

जल्द ही ये जिन्दगी की भाग दौड़ रूप डोर छूट जायेगी
होगा जिन्दगी मैं संयम , बंधन से जिन्दगी मुक्ति पाएगी.

खिलने दो जीवन की, ठिठुरी ये मुट्ठियाँ 
जीवन को मुस्कान मिले , और विचारों को आसमान

सुनो और उठो कि ये जीवन का , उत्सव आवाज़ देता है
ग़मगीन साँसों को , एक नई सुबह का आभास देता है

मंजिल की जुस्तज़ू है , तो जारी रहेगा सफ़र तेरा
यूं विश्राम को अपनी मंजिल की , राह का रोड़ा न बना

जागो , उठो और बढ़ चलो , कि मंजिल पुकारती तुझको
बगैर प्रयासों के सपने मंजिल की राह का ,.हमसफ़र नहीं होते

वैभव की चकाचौंध से , रोशन यह रंगीन दुनिया
इस चकाचौंध में कहीं गुम न हो जायें , कुछ ऐसा करें

तुम्हैं कोई सुने , कोई ऐसा शिखर निर्मित करो
जिन्दगी तलहटी की भीड़ का , हिस्सा न हो जाए कहीं

भीड़ का हिस्सा होकर , जिन्दगी को मंजिल नसीब नहीं होती
खुद से प्रेम करो, खुद को रोशन करो

अकेले में खिलना और महकना , हर किसी को नहीं आता
खिलता और महकता वही , जो खुद को कोशिशों के सागर में डुबोता

जीवन से मिलती जुलती है , लहरों की कहानी
कहीं खुशियों का ज्वार , तो कहीं ग़मों का भाटा


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