जीवन बंधन से मुझे मुक्त कर दो
जीवन बंधन से मुझे मुक्त कर दो.
मुझको चिर निद्रा का सुख दो
पीर मेरी सब मुझसे छूटे
मुझे उजाले का अम्बर दो
व्याप्त हो सकू मैं इस नभ में
मुझे पंचतत्व में विलीन कर दो
जग की माया झूठी माया
मुझको बंधनों से दूर कर दो.
रखना हो गर मुझको इस तन मैं
भक्ति का मुझे सागर कर दो
मुझे भोग में रूचि न देना
सत, चित , सुन्दर पावन कर दो
गीता का मुझे जान नहीं है.
निष्काम कर्मयोग का रस दो
स्वयं की मुझको चिंता न हो
पर उपकार जीवन धन कर दो
है जग के स्वामी जगदीश्वर
अपने चरणों की मुझको रज दो
है वासुदेव मैं शरण तुम्हारी
मुझको मोक्ष मार्ग का वर दो
जीवन बंधन से मुझे मुक्त कर दो.
मुझको चिर निद्रा का सुख दो
पीर मेरी सब मुझसे छूटे
मुझे उजाले का अम्बर दो
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