Sunday, 19 June 2016

चाँद से कह दो

चाँद से कह दो

चाँद से कह दो , चांदनी का समंदर हो जाए
फूलों से कह दो, खुशबुओं का समंदर हो जाएँ

सरिता से कहो, पावन हो बह निकले
भवरों से कह दो , मधुर स्वर में गुनगुनाएं

मानव से कहो, मानवता का सुर छेड़ें
रिश्तों से कहो , सामाजिकता का गुण गायें

देवालयों से कह दो, पुण्य चरित्रों का विस्तार हो
जाएँ

संत जनों से कहो, धर्म, संस्कृति, और संस्कारों
का विस्तार हो जाएँ

लहरों से कह दो, किनारों को मंजिल कर लें
मंदिरों, मस्जिदों , गुरद्वारों, चर्चों को कह दो ,
धर्म का विस्तार हो जाएँ

बचपन से कह दो, आदर्शों की अंगुली पकड़ बढ़
चलें

युवाओं से कह दो, संस्कृति, संस्कारों को जीवन
का गहना कर लें

बुजुर्गों से कह दो, अपने आशीष और अनुभवों से
युवा पीढ़ी को पुष्पित करें

समाज से कह दो, रिश्तों को धर्म और इबादत
कर लें

खुदा से कह दो , हमें अपने दर का गुल कर लें
प्रकृति से कह दो, हमें अपनी गोद का आलिंगन
नसीब करे

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