Sunday 19 June 2016

किस तट पर छूट गयीं

किस तट पर छूट गयीं

किस तट पर छूट गयीं हमारे आनंद की छापें
किस तट पर इंतज़ार करतीं , जीवन का हमारी साँसें

कुछ टूटे--टूटै से हमारे रिश्ते, कुछ बिखरी--बिखरी सी हमारी
यादें
क्या वो आनंद के क्षणों के सूत्र फिर पिरो सकेंगे हम

किन लहरों का ग्रास हो गयी वो बचपन की खुशनुमा यादें
किस करवट बदल गया आज का सामाजिक पर्यावरण

किस चट्टान के तले दब गर्यी वो संस्कृति, संस्कार की बातें
क्यों कर बिखरीं रिश्तों, मय्यादाओं की सीमाएं

क्यों कर अब नहीं करता कोई नैतिक मूल्यों की बातें
क्यों कर हुए हम अनैतिक विचारों से पोषित विचार क्रांति के
शिकार

किस दिशा प्रस्थान कर गयीं माँ की वो प्यारी--प्यारी लोरियां
अब नहीं दिखर्तीं घरों में सूखे बेरों से भरी बोरियां

किस भोर का गवाह होंगी रिश्तों की आत्मीयता
किस कल--कल करती नदी का स्वर होंगे रिश्तों की संवेदनशीलता

ऐसा क्‍या हुआ रिश्तों पर भारी पड़ रही अवसरवादिता
ऐसा क्‍या हुआ बुजुर्गों और युवा पीढ़ी के बीच बढ़ रही वैचारिक दूरियां

क्यों कर हुए शिक्षा के मंदिर अब शिक्षा के व्यावसायिक केंद्र
क्यों कर जीवित नहीं रख पाए हम गुरु शिष्य परम्परा

किस तट छूट गयीं वो साम्प्रदायिक एकता की भावनाएं
क्यों कर धर्म को दिया जा रहा राष्ट्र से ऊपर आसन

किस तट पर छूट गयीं हमारे आनंद की छापें
किस तट पर इंतज़ार करतीं , जीवन का हमारी साँसें

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