Sunday, 2 February 2020

व्यंग्य


व्यंग्य

आयेंगे अच्छे दिन करो थोड़ा इंतज़ार
ऐसा बार  - बार कहते , उन्हें शर्म नहीं आती

कर दूंगा रोजगार से सभी को मालामाल
इतना भी मत फेंको , ये बात सभी को नहीं भाती

मैं हूँ तो सब मुमकिन है , बार  - बार दोहराते हैं वो
कहीं से कोई खुश खबर नहीं आती

भगवान् राम को भी कर दिया जिन्होंने शर्मशार
ऐसे नेताओं को खुद पर शर्म क्यों नहीं आती  

उन्हें कुर्सी की फ़िक्र है , देश से उन्हें क्या लेना  - देना
वोटरों को उनकी ये चाल समझ क्यों नहीं आती

हिन्दू  - मुस्लिम करते हैं , वो कुर्सी की खातिर
देशप्रेम, देश धर्म की बातें नेताओं को क्यों नहीं भातीं

दलबदल की राजनीति ने किया राजनीति को शर्मशार
अपने ज़मीर को तार  - तार करते इन्हें शर्म क्यों नहीं आती

देश की सेना के नाम पर भी मांगते हैं ये वोट
शूरवीरों के नाम वोट मांगते इनकी आत्मा क्यों नहीं लजाती

आयेंगे अच्छे दिन करो थोड़ा इंतज़ार
ऐसा बार  - बार कहते , उन्हें शर्म नहीं आती

कर दूंगा रोजगार से सभी को मालामाल
इतना भी मत फेंको , ये बात सभी को नहीं भाती


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