खुद को कहता है वो खुदा का शागिर्द
( व्यंग्य )
खुद को कहता है वो , खुदा
का शागिर्द
हर वक़्त घिरे रहता है ,
चापलूसों से इर्द - गिर्द
खुदा का बन्दा कहकर ,
वोटरों को लुभा रहा है वो
वोटरों को इसी बहाने ,
बेवकूफ बना रहा है वो
वोटरों को समझता है वो,
राजनीति का मोहरा
वोटर जो आ जाए अपनी पर,
उतार देगा सेहरा
वोटर जो जाग जाएगा , तूफान
लाएगा
अच्छे - अच्छे दिग्गजों की , नैया डुबायेगा
वोटरों के मिजाज़ का कोई
भरोसा नहीं होता
जब जागता है फिर वो किसी का
नहीं होता
वोटर को बेवकूफ समझने की ,
गलती नहीं करना
ये सत्ता के लिए परमाणु बम
है इससे पंगा नहीं लेना
वोटरों को विकास के सपने से
है बहुत प्यार
गर विकास न हो तो फिर वोट
है बेकार
वोटर को लुभाने से कुछ
हासिल नहीं होता
कुर्सी को बचाने से भी कुछ हासिल
नहीं होता
कुछ करना है तो , देश के
लिए करो
गर मरना है तो , देश के लिए
मरो
नेतागिरी का अपना कोई इमां
नहीं होता
कुर्सी पर ताउम्र किसी का
नाम लिखा नहीं होता
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