Sunday, 2 February 2020

खुद को कहता है वो खुदा का शागिर्द ( व्यंग्य )


खुद को कहता है वो खुदा का शागिर्द ( व्यंग्य )

खुद को कहता है वो , खुदा का शागिर्द
हर वक़्त घिरे रहता है , चापलूसों से इर्द  - गिर्द

खुदा का बन्दा कहकर , वोटरों को लुभा रहा है वो
वोटरों को इसी बहाने , बेवकूफ बना रहा है वो

वोटरों को समझता है वो, राजनीति का मोहरा
वोटर जो आ जाए अपनी पर, उतार देगा सेहरा

वोटर जो जाग जाएगा , तूफान लाएगा
अच्छे  - अच्छे दिग्गजों की , नैया डुबायेगा

वोटरों के मिजाज़ का कोई भरोसा नहीं होता
जब जागता है फिर वो किसी का नहीं होता

वोटर को बेवकूफ समझने की , गलती नहीं करना
ये सत्ता के लिए परमाणु बम है इससे पंगा नहीं लेना

वोटरों को विकास के सपने से है बहुत प्यार
गर विकास न हो तो फिर वोट है बेकार

वोटर को लुभाने से कुछ हासिल नहीं होता
कुर्सी को बचाने से भी कुछ हासिल नहीं होता

कुछ करना है तो , देश के लिए करो
गर मरना है तो , देश के लिए मरो

नेतागिरी का अपना कोई इमां नहीं होता
कुर्सी पर ताउम्र किसी का नाम लिखा नहीं होता


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