Sunday, 28 February 2016

सज़ल नेत्रों से


सजल नेत्रों से

सजल मेत्रों से , वह
अपने दोनों हाथों को जोड़े

अपने जीवन के
इन असंवेदी क्षणों में

स्वयं को
इन नराधमों से
बचाने का प्रयास करती

स्वयं पर होने वाले अत्याचार
से स्वयं को
रक्षित करने का
प्रयास करती

अमानवीय , अनैतिक
व्यवहार से पोषित
इन दुराचारियों को
समझाने का

असफल प्रयास करती
एक नारी की
व्यथा की कहानी

उसी की जुबानी
जो न चाहते हुए भी

उन पाशविक विचारों से ग्रसित
अमानवीय चरित्रों के
चीरहरण का ग्रास हो गयी.

भारत भूमि की छवि
नारी जो पूजनीया है

माँ, बहन, देवी के रूप में
आज कुंठित काम--पिपासा
का शिकार हो रही

पत्र--प्रतिपल हो रही
इन चीरहरण की घटनाओं ,
अमानवीय, अनैतिक, असामाजिक प्रयासों पर

कब लगेगा विराम
कब हम कह सकेंगे

नारी अब सुरक्षित है
नारी अब तुम निर्बल नहीं , सबल हो

तुम पूजनीया हो , तुमसे ही जगत है.
धरा  है, जीवन है




Tuesday, 23 February 2016

मेरे मन बसियो श्री भगवान्

मेरे मन बसियो श्री भगवान

मेरे मन बसियो श्री भगवान, कृपा करियो श्री भगवान्‌
पावन करियो श्री भगवान्‌ ,अपना करियो श्री भगवान्‌

मन मंदिर में आकर बसियो श्री भगवान्‌ ,
चरण--कमल में बलि--बलि जाऊं श्री भगवान्‌

मन मेरा हर्षित हो जाए श्री भगवान
 सदाचार का पाठ पढ़ाओ श्री भगवान्‌

संकल्प मार्ग पर ले लो मुझको श्री भगवान्‌ 
 भाग्यवान तुम कर दो मुझको श्री भगवान्‌

चरण कमल का दे दो आसरा श्री भगवान्‌,
 भाग्यवान तुम कर दो मुझको श्री भगवान्‌

मंगल कर्म सभी हों मेरे श्री भगवान्‌ , 
सभी कर्म तुझको हों अर्पण श्री भगवान्‌

उत्कर्ष राह पर ले लो मुझको श्री भगवान्‌ , जीवन
ज्योति जला दो प्रभु जी श्री भगवान्‌

द् 'हृदय कर दो प्रभु मेरा श्री भगवान्‌ , 
चंचल मन को बस मैं कर दो श्री भगवान्‌

इस निर्वल को सबल्र बना दो श्री झगवान्‌ ,
 इस याचक को दरश दिखा दो श्री भगवान्‌

सफल करो प्रयास मेरे श्री भगवान ,
 सत्य राह दिखलाओ मुझको श्री भगवान

सार्थक हो जाए जीवन मेरा श्री भगवान, 
मन मंदिर को पावन कर दो श्री भगवान

मन को मेरे पावन कर दो श्री भगवान,
 तप हो जाए मेरी धरोहर श्री भगवान

धर्म राह पर ले लो मुझको श्री भगवान,
 आध्यात्म राह पर ले लो मुझको श्री भगवान

मन दर्पण को भक्ति से सजा दो श्री भगवान ,
 सरिता सा मुझे पावन कर दो मुझको श्री भगवान

निर्मल पावन हो जाऊं मै श्री भगवान,
 तुझ पर खुद को समर्पित कर दूं श्री भगवान

मेरे मन बसियो श्री भगवान, कृपा करियो श्री भगवान्‌
पावन करियो श्री भगवान्‌ ,अपना करियो श्री भगवान्‌




Wednesday, 17 February 2016

तन समर्पित, मन समर्पित

'तन समर्पित , मन समर्पित

तन समर्पित , मन समर्पित
और ये जीवन समर्पित

आस्तिक हों विचार मेरे
प्रयास मेरे तुझको समर्पित

स्वच्छ हों सब कर्म मेरे
कर्म सब तुझको समर्पित

पर उपकार जीवन बना लू,
मानवता सब कुछ लुटा दूँ.

उत्कर्ष की तुम राह देना
अभिनन्दन तुझको समर्पित

है कृपालु, है दयालु
सारी कृतियाँ तुझको समर्पित

कीर्ति पताका करना रोशन
पुरस्कार तुझको समर्पित

अभिमानी मुझको न करना
स्वाभिमान तुझको समर्पित

अनुनय विनय स्वीकार करना
जीवन मेरा तुझको समर्पित

पवित्र हों विचार मेरे
अहंकार मुझको न घेरे

संतोष हो जीवन का गहना
करें मैं सब कुछ समर्पित

हे प्रभु तेरी कृपा हो
सदिचार तुझको समर्पित

प्रार्थना स्वीकार करना
प्रयासों को मैरे अनुपम करना

शीश तेरे चरणों में रखकर
करें अपना सब कुछ समर्पित

अनुरोध मेरा स्वीकार करना
सच की राह मुझको है वरना

अंतःकरण पावन हो मेरा
जीवन का हर क्षण समर्पित

मिक्षु बन तेरे द्वार आया
माया जगत मुझको न भाया'

कर मुझे सरिता सा पावन
करे तुझे सब कुछ समर्पित

मुक्ति का वरदान देना
चरणों का अपने दास करना

याचना अक्ति की करता
दयानिधि जीवन समर्पित

अपना अनुचर मुझको करना
चरणों मैं अपने मुझको रखना

मोक्ष हो जीवन का गहना
कर्म सब तुझको समर्पित




Tuesday, 16 February 2016

प्रसाद तेरी कृपा का

प्रसाद तेरी कृपा का

प्रसाद तेरी कृपा का . जो मुझे मिल जाएगा.
जन्म लेना, तेरी कृपा  से, मेरा सफल हो जाएगा

तेरे चरणों में , मुझकों जो स्थान मिल जाएगा
मेरा हर एक कर्म, तेरी कृपा से सफल हो जाएगा.

गुमराह होने से बचा लेना , मुझको ऐ मेरे खुदा
तेरी कृपा से मेरा जीवन , पुष्प सा खिल जाएगा.

भर दे झोली मेरी, तेरी भक्ति के भण्डार से  
तन - मन तेरे चरणों में  अर्पित हो जाएगा

मुझको मुहब्बत हो गयी. तुझसे मेरे  खुदा
तेरे करम से तेरा दर , ठिकाना मेरा  हो जाएगा.

तेरी  इबादत ऐ खुदा . ईमान हो जाए मेरा
तेरी  निगाह मुझ पर जो पड़े ,मुकद्दर  मेरा संवर जाएगा

नादान हूँ, नासमझी को मेरी, मेरे  खुदा तू माफ़ कर
रहम कर मेरे खुदा, मेरे  दिल को करार आयेगा

आसान हों राहें  मेरी , इतना करम कर ऐ खुदा
तेरे निगाहें - करम से मेरा, आशियों रोशन हो जाएगा

एक इशारा हो तेरा. खुद को निसार कर दूँ तुझ पर
तेरी खिदमत करके , मेरा जीवन संवर जाएगा

प्रसाद तेरी कृपा का .  जो मुझे मिल जाएगा.
जन्म लेना, तेरी कृपा  से, मेरा सफल हो जाएगा

तेरे चरणों में , मुझकों जो स्थान मिल जाएगा
मेरा हर एक कर्म, तेरी कृपा से सफल हो जाएगा.

नशा करोगे तो - नशा मुक्ति पर कविता


नशा करोगे तो


नशा करोगे तो , यौवन का साथ कैसे पाओगे

 जियोगे चंद रोज़, मौत को जल्दी ही गले लगाओगे


नशे ने दी है , घरों को कलह की सौगात

नशे में जो डूबे रहोगे, तो चूड़ियों की खनक को तरस जाओगे


नशे ने छीन लिए हैं , माँ से बेटे, बहन से भाई

नशे ने छीनी जवानियाँ, जीवन को तरस जाओगे.


तम्बाकू, कोकीन या हीरोइन , नशे सभी हैं बुरे 

नशे ने रुलाये खून के आंसू यूं ही डूबे रहे . तो सम्मान कहाँ से पाओगे


नशा करने वालों की , हंसी  नहीं होती सुबह

नशा हुआ किसी का दोस्त नहीं, यूं ही नशा करोगे, तो अभिनन्दन कहाँ से पाओगे


नशे से टूटते  रिश्ते समाज मैं घटता रूतबा

नशे से देश की बिगइती छवि , यूं ही नशे के दलदल मैं डूबे रहोगे तो, देश का सम्मान
कैसे बढ़ाओगे


नशा करोगे तो मात के दलदल मैं फंसते जाओगे , नशा करोगे तो रिश्तों को कैसे
निभाओगे

नशा करोगे तो मौत को करीब पाओगे , नशा करोगे तो मौत को गले लगाओगे


नशा करोगे तो , यौवन का साथ कैसे पाओगे

 जियोगे चंद रोज़, मौत को जल्दी ही गले लगाओगे


नशे ने दी है , घरों को कलह की सौगात

नशे में जो डूबे रहोगे, तो चूड़ियों की खनक को तरस जाओगे



Monday, 15 February 2016

सब मौन हैं क्यों


सब मौन क्यों हैं

बालिका भ्रूण हत्या , एक नासूर है , फिर भी

सब मौन क्यों हैं ?

चौराहों , सड़कों पर खून से लथपथ
फेंकी जा रहीं हज़ारों निर्भया देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आधुनिक सामाजिक विचारों से
दिशाहीन होती युवा ऊर्जा , फिर भी

सब मौन क्यों हैं ?

सामाजिक बंधनों , रिश्तों को रूढ़िवादिता का
नाम देकर , सामाजिक दायित्वों से पल्ला झाड़ती
इस युवा पीढ़ी के इन आधुनिक विचारों को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नए असामाजिक रिश्तों से पोषित होती ये युवा पीढ़ी
live – in – relationship , my body my rule  का अप्राकृतिक उदघोष करती
इस युवा पीढ़ी को इन नवीं विचारों से पोषित होता देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नशे का बाज़ार चलाते , नशे के सौदागर
देश की युवा धरोहर को कमाई की
चक्की में पीसते , ये देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

संस्कृति, संस्कारों को रूढ़िवादिता कहकर
आदर्श की नरः से पलायन करती
इस आधुनिक विचारों से पोषित जिन्दगी देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?

सुविचारों पर ,आधुनिक विचारों के कुप्रभाव देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?

परमाणु बमों के आतंक के साए में
डरी – डरी , सहमी – सहमी सी
जिंदगियां देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आतंक के साए में पल- पल सिसकती
मौत के साए से आशंकित जिंदगियां देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नानक , कबीर,  गौतम, विवेकानंद के
विचारों से पल्ला झाड़ती वर्तमान जिन्दगी से परिपूर्ण  वर्तमान असामाजिक परिदृश्य
देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

“डर के बाद जीत “ को चरितार्थ करने के प्रयास में
जिन्दगी  के साथ
खेल खेलती युवा पीढ़ी का
यह आप्राकृतिक कृत्य देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का होता पतन ,
स्वयं की ही निर्मित मुश्किलों से
जूझता मानव
परम्पराओं पर से उठती श्रद्धा और विश्वास देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

कम प्रयासों से अधिक पाने की लालसा
बुजुर्गों का समाज में घटता स्थान और सम्मान देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?
भौतिक विश्व में जिन्दगी का चरम ढूँढने
का असफल प्रयास करते मानव को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

देवालयों को छोड़ पब और बार की ओर
पलायन करती युवा पीढ़ी को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

मानव का मानव पर से उठता विश्वास
मानव का मानव द्वारा पतन,
अप्राकृतिक कृत्यों में लिप्त
मानव को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आध्यात्मिक शिक्षा पर लग रहे
ग्रहण को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

पल – पल हो रहे चीरहरण और
बढ़ती असुरक्षा की भावना को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आदर्शों पर हो रहा कुठाराघात ,
संस्कृति और संस्कारों पर हो रहा प्रहार
परम्पराओं को रूढ़िवादिता की नवीन परिभाषा से पोषित करने का असामाजिक एवं अनैतिक प्रयास

आधुनिकता की अंधी भट्टी में पककर कुंठित होता समाज
विकास के अमानवीय आयामों को स्थापित
करता आज का समाज
ये सब देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

वो कहते हैं खुद को
खुदा का बंदा और
बहा रहे हैं खून
इंसानियत के रखवालों का
इन इंसानियत को
नोच खानेवाले चरित्रों को
देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

चलो चलें
इस मौन को तोड़ें
इन चीरहरण की घटनाओं पर लगायें विराम
आधुनिक विचारों से पोषित होती युवा पीढ़ी को
राम , नानक के आदर्शों से परिचित करायें

संस्कृति और संस्कारों से पोषित परम्पराओं का
इस युवा पीढ़ी को आचमन करायें

प्रकृति हो रहे अमानवीय अत्याचार से धरती माँ को मुक्त कर
स्वच्छ पर्यावरण की ज्योति जलायें

नारी शक्ति की ऊर्जा से समाज को
पोषित करें
परमाणु मुक्त भूमंडल का विस्तार करें
विश्व शान्ति का सन्देश जन – जन तक पहुंचायें

आतंक की परिभाषा को समाप्त कर
विश्व बंधुत्व की भावना का विकास करें

भौतिक सुख से स्वयं को मुक्त कर
आध्यात्मिक सुख का बिगुल बजाएं

देवालयों को मुक्ति मार्ग की संज्ञा दे
समाज , राष्ट्र और समस्त भूमंडल को
विश्व शांति , धार्मिक एकता , विश्व बंधुत्व का केंद्र बनाएं

आओ इस मौन को तोड़ें
एक नया विश्व बनाएं
एक नया विश्व बनायें






kb , mb , gb की भेंट चढ़ती जिन्दगी

  
kb , mb , gb की भेंट चढ़ती जिन्दगी

kb , mb , gb की भेंट चढ़ती जिन्दगी
mobile पर seconds गिनती जिन्दगी

selfie के चक्रव्यूह में उलझती जिन्दगी
mobile पर balance को लेकर चिंतित जिन्दगी  

फेसबुक , ट्विटर , whatsapp , hike पर
कुर्बान होती जिन्दगी

24 घंटों की जिन्दगी में से
सोने के 8 घंटों पर
कुठाराघात करती
ये multimedia की जिन्दगी

सोचने को मजबूर करती
क्या यही अंतिम सत्य रह गया है
इस जिन्दगी का

या

इस सत्य से परे भी
और कोई सत्य है

जो हमें इस यांत्रिक मायाजाल
के इस दलदल से
बाहर ला

हमारे जीवन को प्रफुल्लित कर सके
दे सके हमारे जीवन को
एक नयी राह

हमारे जीवन के उद्देश्य की
पूर्ति का वरदान दे सके
इस भौतिक संसार से
मोहभंग कर

हमें प्रस्थित कर सके
आध्यात्म की ओर

स्वयं के उद्धार की ओर
हमें विवश कर सके

यह सोचने को
कि
जीवन का उद्देश्य क्या है ?
लक्ष्य क्या है ?

इस यांत्रिकता ने जीवन को
एक अजीब मोड़ पर
ला खड़ा किया है

दैनिक जीवन के पल – पल के
कार्यकलापों पर
पड़ रहा
इसका कुप्रभाव है

घर हो, टॉयलेट हो , बाथरूम हो
बस हो , ट्रेन हो , प्लेन हो
मंदिर हो , स्टेशन हो या फिर ..........

हर जगह केवल एक ही विषय
गुनगुनाते हुए देखा जा सकता है

ट्रेन पर सेल्फी , जीवन में adventure पैदा करने का video
whatsapp, twtitter , internet , hike ,fb आदि – आदि के

पन्नों पर उलझती आँखें

एक अनजान मनोवैज्ञानिक बीमारी
की ओर
धकेलती

ये mobile , laptop , ये internet
की दुनिया

मानव जितना सजग , उस परमात्मा के प्रति नहीं
जितना कि इन यांत्रिक गतिविधियों के लिए

एक ओर तो उस परमात्मा के लिए
मानव के पास समय का अभाव
वहीं दूसरी ओर
यदि वह दो पल के लिए

उस परमात्मा की शरण होना भी चाहे
तो
मन में

 whatsapp, twtitter , fb, hike पर
message को लेकर
मन में एक विशेष
प्रकार की चिंता

इस भूलभुलैया का कोई अंत है
भी या नहीं

या यूं ही
डूबते – उतराते हुए बीत जायेगी जिन्दगी

या फिर
इस चक्रव्यूह से मुक्त हो
उन्मुक्त गगन में विचरण कर सकेगी

ये जिन्दगी

क्या होगा इस
वर्तमान संकटपूर्ण
जीवन का

कोई तो ऐसा छोर मिले
जो मुक्त कर दे

और ले चले
उस गगन की ओर

जहां
केवल और केवल

विद्यमान हो असीम शांति
और आध्यात्मिक सुख