ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ
हम बदल से गए
समय के साथ नहीं
शायद अवसरवादिता के कारण
या फिर
अतिमहत्वाकांक्षा के कारण
या यूं कहूं
जिन्दगी की चमक – दमक
अतिआधुनिक
होने की ललक
या फिर
कर्तव्य मार्ग से पलायन
हम यह भी
कह सकते हैं
कि
सामाजिक बन्धनों के प्रति
अलगाव या प्रतिकार
भरा रवैया
ऐसा क्या हुआ
हमने अपने
संस्कार रुपी धरोहर
को दे दी तिलांजलि
क्यों हमने कर लिया
अपनी संस्कृति से किनारा
ऐसा क्या हुआ
फेर लिया मुंह हमने
सामाजिक रिश्तों से
ऐसा क्या हुआ
कर्तव्य मार्ग से होता मोहभंग
अधिकारों के प्रति
बढ़ती सजगता
शिक्षा का हो
रहा
आधुनिकीकरण
साथ ही हो रहा
व्यवसायीकरण
शिक्षा के ध्रुवीकरण ने
शिक्षा को
आध्यात्मिकता से किया दूर
भौतिक जगत से बढ़ रहा
लगाव
ऐसा क्यों हुआ
हमारी सोच
दिन – प्रतिदिन
मानवीय से अमानवीय
की ओर
हो रही प्रस्थित
क्यों समझ लिया हमने
शरीर को अतिमहत्वपूर्ण
और
आत्मा को नगण्य
क्यों हमारे लिए
महत्वपूर्ण स्थल हो गए
मदिरालय
ऐसा क्यों हुआ
हम देवालय से दूर हो गए
क्यों प्रकृति के साथ
हो रहे अन्याय को
हमने आँखों बंद कर
देखा
ऐसा क्या हुआ
हम सुनामी , भूकंप, बाढ़ ,
स्वाइन फ़्लू , आतंकवाद
के शिकार हो गए
ऐसा क्या हुआ
आये दिन की
चीरहरण की घटनाओं ने
स्त्री सुरक्षा ,
स्त्री अस्तित्व पर
सवाल खड़े कर दिए
ऐसा क्या हुआ
हम स्वयं से
दूर हो गए
जिन्दगी उलझ कर रह गयी
जिन्दगी की ऊहापोह में ,
भागदौड़ में,
स्वयं को खोजते हम
अपने ही अस्तित्व को
तलाशते हम
चले जा रहे
किस दिशा में
शायद हममे से
किसी को भी
इस बात का ज्ञान नहीं
पर चले जा रहे हैं
दिशाहीन से
जीवन का लक्ष्य ,
जीवन का उद्देश्य ,
जीवन का सच
क्या है ?
इस प्रश्न का उत्तर
मिलेगा भी या नहीं
ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ
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