तेरे दर पर आकर कान्हा
तेरे दर पर आकर कान्हा, खुश हो गया हैँ मैं
चरणों में मुझ्कों ले लो, दे दो मुझे सहारा
तेरी मुरली की धुन में . खो गया हूँ मैं
तेरे दर पर आकर कान्हा, खुश हो गया हूँ मैं
बिगड़ी मेरी बनाओ कान्हा , किस्मत मेरी संवारो
तेरे गुलशन का फूल होकर, महक गया हूँ मैं
मुझे तुमसे है मुहब्बत, इसको कुबूल कर लो
तेरी आशिकी में रहकर, इंसान हो गया हूँ मैं
मेरी इबादत का , इम्तिहान न लेना कान्हा
एक तेरे करम से कान्हा , जी रहा हूँ मैं
कहती है तुझको दुनिया , बांके बिहारी कान्हा
तेरे दर पर जगह दो मुझको, शागिर्द हो गया हूँ मैं
अपने करीब रख लो, दास बना लो मुझको
तेरी मोहक छवि पर , कुर्बान हो गया हूँ मैं
गलती जो हो जाए मुझसे, मुझको माफ़ करना
तुझकों हो ख्याल मेरा, तेरी खिदमत में आ रहा हूँ मैं
अति सुन्दर कविता
ReplyDelete