Friday, 18 March 2016

वो सवार ही क्या - मुक्तक

१.


वो सवार ही क्या

जिसे मंजिल का एहसास न हो

वो पतवार ही क्या

जिसे किनारों का एहसास न हो

२.

इश्क को वफ़ा से

यूं न जोड़कर देखो

वक़्त का क्या भरोसा

किस करवट बदल जाए



3.


बेगैरत हैं वो

जिन्हें मादरे--वतन से प्यार नहीं

बिक जाते हैं जो

चंद सिक्कों के लिए


4.

बला की खूबसूरती से

नवाज़ा है खुदा ने उसको

खुदा करे उनको

हमसे मुहब्बत हो जाए

5.


अभी कुछ और रातें

तन्हाइयों में गुजरेंगी ए नादाँ दिल

सब्र रख उस खुशनुमा

सुबह के होने तक



इश्क की खातिर खुद को मिटा देना - शायरी

१.

इश्क की खातिर ,खुद को मिटा देना

कुसूर उसका हो तो भी ,खुद को सज़ा देना

इश्क ,खुदा की बंदगी का है नाम , ये मालूम है तुझे

खामोशी से उसकी बेवफाई को भुला देना

२.


खामोश रहकर इश्क को अंजाम दे

खामोश रहकर इश्क को परवान दे

इश्क को ज़माने की निगाहों से छुपाकर रख

अपनी मुहब्बत को इबादत नाम दे


3.


इश्क. निर्जीव को सजीव बना देता है

इश्क आदमी को खुदा से मिला देता है

बचाकर रखना खुद को कातिल निगाहों से

वरना इश्क सब कुछ तबाह कर देता है


4.


कद उनके छोटे होते हैं

जिनको मंजिल की आस नहीं होती

जीते हैं वो बुजदिल की तरह

जिनको सपनों की चाह नहीं होती





आवेश में आकर मानव - मुक्तक

१.

आवेश में आकर मानव
सदबुद्धि खो देता है
इस अवस्था में मानव का
हर पल  पतन होता है


२.

विजय की बात कर
और विजय की राह चल
पराजय उनकी होती है
जिनकी कोई मंजिल नहीं होती









अक्सर वो मेरे ख़्वाब में

अक्सर वो मेरे ख़वाब में
मुझे रूबरू होते हैं
खुदा करे ये ख़वाब में उनका आना
हकीकत हो जाए

वो गुलशन ही कया
जिसमे गुलाब न हो
वो जिन्दगी ही क्या
जिसमे जीवनसाथी का साथ न हो

तृष्णा , प्यास, लालसा और अभिलाषा
सभी मायाजाल हैं
माया -- मोह में उलझा मानव
मोक्ष मार्ग पर होता कंगाल है

दोस्ती जहां में खुदा का दिया
खूबसूरत उपहार है
जिसका कोई दोस्त न हो
उसकी जिन्दगी बेज़ार है

तेरे जादुई हुस्न ने

तेरे जादुई हुस्न ने
किया मुझको बेकरार
तेरे हुस्न का साथ मिले
दिल को आये करार

फुर्सत मिले तो मेरी गली का
चक्कर लगा लेना
ये गुजारिश है तुझसे
बेआबरू न हो मुहब्बत मेरी

अफसाना न हो जाए
मेरी मुहब्बत, मेरा इश्क
खुदा करे चंद रातें
उसकी बाहों में गुज़र हो जाएँ तो अच्छा

दिल के ज़ख्म
नासूर न बन जाएँ ऐ मेरे खुदा
तेरा करम हो और
उसके दामन का सहारा हो मुझे

तेरी तलाश है मुझको

तेरी तलाश है मुझको
तू छुपी है कहाँ
खुदा करे मेरी तलाश को
मंजिल हो नसीब

नशीली तेरी आँखों में
डूबने की आरज़ू मेरी
खुदा करे मेरी आरज़ू को
मंजिल हो नसीब

तेरे इनकार में भी
इकरार का एहसास होता है मुझे
खुदा करे इनकार में भी तू
इकरार का एहसास करे

जिन्दगी तेरे बगैर गुजर जाए
मुझे मज़ूर नहीं
खुदा करे मेरा आशियाँ
रोशन हो तुझसे

तेरे दर पर आकर कान्हा - भजन

तेरे दर पर आकर कान्हा

तेरे दर पर आकर कान्हा, खुश हो गया हैँ मैं
चरणों में मुझ्कों ले लो, दे दो मुझे सहारा

तेरी मुरली की धुन में . खो गया हूँ मैं
तेरे दर पर आकर कान्हा, खुश हो गया हूँ मैं

बिगड़ी मेरी बनाओ कान्हा , किस्मत मेरी संवारो
तेरे गुलशन का फूल होकर, महक गया हूँ मैं

मुझे तुमसे है मुहब्बत, इसको कुबूल कर लो
तेरी आशिकी में रहकर, इंसान हो गया हूँ मैं

मेरी इबादत का , इम्तिहान न लेना कान्हा
एक तेरे करम से कान्हा , जी रहा हूँ मैं

कहती है तुझको दुनिया , बांके बिहारी कान्हा
तेरे दर पर जगह दो मुझको, शागिर्द हो गया हूँ मैं

अपने करीब रख लो, दास बना लो मुझको
तेरी मोहक छवि पर , कुर्बान हो गया हूँ मैं

गलती जो हो जाए मुझसे, मुझको माफ़ करना
तुझकों हो ख्याल मेरा, तेरी खिदमत में आ रहा हूँ मैं

Wednesday, 16 March 2016

कान्हा

कान्हा

कैसे जियें मैं इस जीवन को , इतना मुझे समझा दो कान्हा
कैसे करूं खुद को मैं पावन , इतना मुझे बतला दो कान्हा

तेरी चरण रज मैं कैसे पाऊँ, कुछ तो मुझे बतला दो कान्हा
चंचल मन समझाऊें कैसे . इतना मुझे समझा दो कान्हा

पावन मैं कैसे करूं विचार, कुछ तो मुझे बतल्रा दो कान्हा
भक्ति मार्ग मैं कैसे पाऊं, इतना मुझे समझा दो कान्हा

मन मंदिर में तुझको कैसे बिठाऊँ, इतना मुझे बतला दो कान्हा
सत्कर्म राह पर जाऊं कैसे, कुछ तो मुझे समझा दो कान्हा

संकल्प मार्ग मैं पाऊँ कैसे, इतना मुझे बतला दो कान्हा
मंगल्न प्रयास करूं मैं कैसे . कुछ तो मुझे समझा दो कान्हा

अभिनन्दन मार्ग पर जाऊं कैसे, इतना मुझे बतला दो कान्हा
साकार ब्रह्म को पाऊँ कैसे, इतना मुझे समझा दो कान्हा

उत्कर्ष मार्ग को पाऊँ कैसे, इतना मुझे बतला दो कान्हा
उत्तम कर्म करूं मैं कैसे, कुछ तो मुझे समझा दो कान्हा

तुमसे मोह बढ़ाऊँ कैसे . इतना मुझे समझा दो कान्हा
अतिथि बन तुम कब आओगे. कुछ तो मुझे बतला दो कान्हा

तुम जो सच कहोगे

तुम जो सच कहोगे

तुम जो सच कहोगे तो मैं भी सच ही कहूंगा
तुम जो झूठ का सहारा लोगे तब भी मैं सच का ही
साथ दूंगा

तुम जो कर्तव्य पथ पर चलोगे तो मैं भी कर्तव्य
पथ को ही सर्वोपरि मानूंगा
तुम जो कर्तव्य पथ से विमुख जो हो जाओगे, तब
भी में कतैव्य पथ पर अविराम बढ़ता चलूंगा

तुम जो अनुशासन को अपने जीवन का ध्येय बना
लोगे तो मैं भी अनुशासन पथ पर चलूँगा
तुम जो अनुशासन की राह का त्याग जो कर दोगे
तब भी मैं अनुशासन को जीवन का उद्देश्य कर
उत्कर्ष राह पर हो चलूँगा

तुम जो मानवता को अपना लोगे तो मैं भी इसी राह पर बढ़
चलूँगा
तुम जो अमानवीय व्यवहार करने लगोगे तब भी मैं मानवीय
व्यवहार के साथ स्वयं को अभिनन्दन मार्ग पर प्रस्थित करूंगा

तुम जो अभिनन्दन मार्ग को जो अपने जीवन का उद्देश्य कर
लोगे तो मैं भी अभिनन्दन मार्ग को अपने जीवन का ध्येय कर
लगा
तुम जो अभिनन्दन पथ से विमुख हो जाओगे तब भी मैं
अभिनन्दन राह को अपने जीवन का सत्य कर लूंगा

तुम जो स्वाभिमान की बात करोगे तो मैं भी स्वाभिमान को
अपने जीवन का गहना कर लूँगा
तुम जो अहं में डूब जाओगे तब भी मैं स्वाभिमान को ही जीवन
का उद्देश्य कर लूंगा

तुम जो कर्म प्रधान जीवन जीना पसंद करोगे तो मैं भी
कर्मप्रिय को कर्म राह हो चलूँगा
तुम जो कर्म प्रधान न हो परिणाम को ध्येय कर लोगे तब भी
मैं सदकर्म को ही जीवन का चरम किये रहूँगा

तुम जो जीवन को सरिता सा पावन कर लोगे तो मैं भी स्वयं
को पावन गंगा सा निर्मल कर लूँगा

तुम जो आस्तिक हो उस प्रभु के चरणों में जीवन अर्पित कर
दोगे तो मैं भी स्वयं को उस परमात्मा के चरणों में अर्पित कर
दूंगा
तुम जो उस प्रभ्नु की राह से भटक जाओगे तब भी मैं खुद को
उस परमात्मा के चरणों का दास बना लूँगा ,
उसकी भक्ति में जीवन के आठों पहर अर्पित कर दूंगा ,
स्वयं को उनकी भक्ति के रंग में रंग लूँगा ,
उनकी कृपा का पात्र होकर जीवन को मोक्ष राह की ओर
प्रस्थित करूंगा और ,
बढ़ चलूँगा उस अंतिम सत्य की ओर ....................

Monday, 14 March 2016

वेदनाओं से मुक्त कर

वेदनाओं से मुक्त कर

बेदनाओं से मुक्त कर . तुम नव जीवन प्रकाश दो
अहंकार से मुझको बचाकर, तुम जीवन संवार दो

भौतिक जगत से विरक्‍्त कर, आध्यात्म का तुम ज्ञान दो
निर्दोष हों प्रयास मेरे. मुक्ति का वरदान दो

बेसहारा न करो तुम. आँचल का अपने साथ दो
आध्यात्म से पुष्पित करो, संतोष का वरदान दो

माया--मोह से मुक्त कर, मुक्ति का तुम ज्ञान दो
हो विलक्षण मेरा जीवन . सत्कर्म का मुझे भान दो

कर लो मुझे अपने अधीन, भक्ति का वरदान दो
हो जाऊं पथिक मैं राह तेरी, सत्संग का मुझे ज्ञान दो

कर्म हों मेरे सभी शुअ. सत्कर्म का वरदान दो
अभिनन्दन हो मेरा भी , मुझे ऐसा वरदान दो

उदार हृदय से सिंचित कर दो, मुझको पूर्ण मानव कर दो
अविलम्ब शरण मैं तेरी आऊँ , मुझको समर्पण का वर दो

सागर सा विशाल हृदय हो, सरिता सा मुझे पावन कर दो
हिमालय सा अटल हो जाऊं मैं, संकल्प मार्ग का आन दो

सफल हों प्रयास मेरे, सुकर्म का वरदान दो
संघर्ष से न डरूं मैं, मंजिल का मुझे भान दो

नैतिकता की राह दिखाओ, सदाचार का मुझे ज्ञान दो
उत्कर्ष राह पर मुझको लेकर, मोक्ष का वरदान दो

Sunday, 13 March 2016

सागर की उफनती लहरों

सागर की उफनती लहरों

सागर सी उफनती लहरों से जूझती जिन्दगी
की ,मानिंद जी रहे हैं हम
सागर की लहरों के थपेड़ों के , किनारे क्यों न हुए हम

पल--पल सिसकती साँसों का साथ लिए कटती
जिन्दगी
किसी के चहरे की मुस्कराहट क्यों न हुए हम

खुशियों के समंदर में डूबने को तरसती जिन्दगी
फूलों की सी महकती खुशबुओं का समंदर क्यों न हुए
हम

माँ के आँचल को तरसती नन्ही  परी की वो बेबस
मुस्कान
उन नन्ही सी परियों की बेबस जिन्दगी की मुस्कान
क्यों न हुए हम

स्झि में, अनजान राहों में भटक रहे हैं हम
किसी की मंजिल की राहों का निशाँ क्यों न हुए हम

दो वक़्त की रोटी जिनके नसीब का हिस्सा न हुई
भूख से बिलखते इन चरित्रों की रोजी--रोटी का सहारा
क्यों न हुए हम

चीरहरण का हिस्सा होता बचपन और आज की नारी
कृष्ण, राम, नानक, बुदूध की तरह आदर्शपूर्ण
व्यक्तित्व बन क्यों न खिले हम

अपने सुनहरे भविष्य को लेकर चिंचित आज की युवा
पीढ़ी
इस भ्रमित व चिंचित युवा पीढ़ी के मार्गदर्शक क्यों न
हुए हम



रात की चाँदनी

रात की चांदनी

रात की चांदनी
शांत भाव से

जिस तरह
जीविका रुपी
वनस्पतियों को
पुष्ट करती है

ठीक उसी तरह
मैं 

मानव को

संस्कृति व संस्कारों,
आदर्शों को संजोते हुए
देखना चाहता हूँ

आने वाली
पीढ़ी को
सुविचारों से
पुष्ट करते हुए |



पुष्प जिस तरह काँटों के बीच

पुष्प जिस तरह काँटों के बीच

पुष्प
'जिस तरह
कॉँटों के बीच रहकर भी

खुशबू से
प्रकृति को सराबोर
करने की
अपनी प्रवृत्ति
को नहीं भूलते

उसी तरह युवा पीढ़ी
अपने आत्म बल,
मानवतावादी विचारों,

संकल्पों के माध्यम से
अपने समाज ,धर्म,
और राष्ट्र को विश्व मंच पर
सुशोभित करें

और अपनी
संस्कृति , संस्कारों , परम्पराओं
को विश्व मंच पर
स्थापित करें



Tuesday, 8 March 2016

ऊँची - ऊँची बिल्डिंगों को

ऊंची  - ऊँची बिल्डिंगों को

ऊंची  - ऊंची  बिल्डिंगों को कर लिया हमने ,तरक्की का सबब
संस्कृति और संस्कारों से , किनारा कर लिया हमने

सुख--विलास हो गए .स्टेटस का सिम्बल
मानवता की राह से .मुंह मोड़ लिया हमने

आत्मीयता का हो रहा .आधुनिक जिन्दगी में अभाव
सामाजिकता उअर रिश्तों से .किनारा कर लिया हमने

धन और दौलत के नशे में ,आत्मा तक डूब चुके हैं हम
इंसानियत की राह से .मुंह मोड़ लिया हमने

बढ़े चले जा रहे हैं .न जाने किस दिशा में हम
सामाजिक बन्धनों से .किनारा कर लिया हमने

न का समाज में घट रहा सम्मान
घर के कुत्तों को कर लिया घर की रौनक हमने

कया बताएं हम .जो कोई पूछ बैठे .उस खुदा का पता
मंदिर, मस्जिद को छोड़ ,मदिरालय से रिश्ता कर
लिया हमने

चंद सिक्कों की चाह में , भूल बैठे उस खुदा को हम
खुदा की बंदगी और खुद की तरक्की से,किनारा कर
लिया हमने

ऊिंची-उँची बिल्डिंगों को कर लिया हमने ,तरक्की का
सबब
संस्कृति , संस्कारों से ,.किनारा कर लिया हमने


Monday, 7 March 2016

ऐसा क्या हुआ

ऐसा क्या हुआ

ऐसा क्या हुआ
हम बदल से गए
समय के साथ नहीं

शायद अवसरवादिता के कारण
या फिर
अतिमहत्वाकांक्षा के कारण

या यूं कहूं
जिन्दगी की चमक – दमक
अतिआधुनिक
होने की ललक

या फिर
कर्तव्य मार्ग से पलायन

हम यह भी
कह सकते हैं
कि
सामाजिक बन्धनों के प्रति
अलगाव या प्रतिकार
भरा रवैया

ऐसा क्या हुआ

हमने अपने
संस्कार रुपी धरोहर
को दे दी तिलांजलि

क्यों हमने कर लिया
अपनी संस्कृति से किनारा

ऐसा क्या हुआ

फेर लिया मुंह हमने
सामाजिक रिश्तों से

ऐसा क्या हुआ

कर्तव्य मार्ग से होता मोहभंग

अधिकारों के प्रति
बढ़ती सजगता
शिक्षा का हो
रहा
आधुनिकीकरण

साथ ही हो रहा
व्यवसायीकरण

शिक्षा के ध्रुवीकरण ने
शिक्षा को
 आध्यात्मिकता से किया दूर

भौतिक जगत से बढ़ रहा
लगाव

ऐसा क्यों हुआ

हमारी सोच
दिन – प्रतिदिन
मानवीय से अमानवीय
की ओर
हो रही प्रस्थित

क्यों समझ लिया हमने
शरीर को अतिमहत्वपूर्ण
और
आत्मा को नगण्य

क्यों हमारे लिए
महत्वपूर्ण स्थल हो गए
मदिरालय

ऐसा क्यों हुआ

हम देवालय से दूर हो गए

क्यों प्रकृति के साथ
हो रहे अन्याय को
हमने आँखों बंद कर
 देखा

ऐसा क्या हुआ

हम सुनामी , भूकंप, बाढ़ ,
स्वाइन फ़्लू , आतंकवाद
के शिकार हो गए

ऐसा क्या हुआ

आये दिन की
चीरहरण की घटनाओं ने
स्त्री सुरक्षा ,
स्त्री अस्तित्व पर
सवाल खड़े कर दिए

ऐसा क्या हुआ

हम स्वयं से
दूर हो गए

जिन्दगी उलझ कर रह गयी

जिन्दगी की ऊहापोह में ,
भागदौड़ में,
स्वयं को खोजते हम
अपने ही अस्तित्व को
तलाशते हम
चले जा रहे

किस दिशा में
शायद हममे से
किसी को भी
इस बात का ज्ञान नहीं

पर चले जा रहे हैं
दिशाहीन से

जीवन का लक्ष्य ,
जीवन का उद्देश्य ,
जीवन का सच
क्या है ?

इस प्रश्न का उत्तर
मिलेगा भी या नहीं

ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ