Friday, 30 October 2015

पिए जा रहे हैं ग़मों का समंदर


पिए जा रहे हैं गमों का समंदर . ये मंज़र बयाँ करें कैसे

पिए जा रहे हैं ग॒मों का समंदर , ये मंज़र बयाँ करें कैसे
मुस्कराहटों के समंदर से ये महफ़िल्र रोशन हो जाए तो अच्छा हो

तार--तार होते रिश्तों से .पट गई है ये दुनिया
रिश्तों की फिर एक नई सुबह .रोशन हो जाए तो अच्छा हो

कोमल फूलों को मसलते .ये आवारा चरित्रों की दुनिया
संस्कार और आदर्श ,जीवन की धरोहर हो जाएँ तो अच्छा हो

होटलों , पबों की भेंट चढ़तीं ये आज की जवानियाँ
मंदिरों, मस्जिदों. गुरुद्वारों और चर्चो के दर की रौनक हो जाएँ तो अच्छा हो

सिसकती आहों का , यौनाचार के घावों का साथ लिए गुजरता बचपन
घर ऑगन हो ये, पुष्प सा खिल जाएँ तो अच्छा हो

किसी को अजनबी कहें या कहें अपना, तो कैसे
जिन्दगी में विश्वास की मिठास घुल जाए तो अच्छा हो

बिखर गए हैं मोती उनकी आँखों के. दिल में पीड़ा हैं लिए
जिन्दगी उनकी भी खुशनुमा बयार हो जाए तो अच्छा हो

उनकी खूबसूरती , उनका यौवन उनके लिए हो रहा अभिशाप
लोगों के दिल में उनके लिए प्यार भरा एहसास जाग जाए तो अच्छा हो







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