Sunday 11 October 2015

हे हिमालय

हे हिमालय

हे हिमालय हे पर्वतों के राजा
तुम्हारी सीमायें कोई लांघ न पाता

हे गिरिराज , हे नभराज
तुम्हारी महिमा हर कोई गाता
 
हे नगपति , हे पर्वतराज
गंगे ने अस्तित्व तुमसे पाया

हे नगाधिप , हे हिमाचल
विस्तृत व्यापक तेरा आँचल

हे हिमालय , हे हिम देव
हिम को तुमने मस्तक पर धारा

शिव को हो तुम सबसे प्यारे
विश्व धरा पर सबसे न्यारे

करते रक्षा तुम सीमा की
हे शैलराज , हे पर्वतराज

अम्बुद हिम बरसाए तुम पर
हर्ष से तुम खिल जाते महीधर

ऊंचा रहे मस्तक तुम्हारा
हे सुरसरिता के जीवनदाता

हे हिमालय हे पर्वतों के राजा
तुम्हारी सीमायें कोई लांघ न पाता

हे गिरिराज , हे नभराज
तुम्हारी महिमा हर कोई गाता 





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