Tuesday 27 October 2015

लगता है मेरे स्वप्न को

लगता है मेरे स्वप्न को

लगता है
 मेरे स्वप्न को
आसमां का मिलेगा सहारा

लगता है
उस पंक्षी को
प्यास से मिलेगी निजात
लगता है
केवल दो बूँद जल
होगा
जीवन का पर्याय

आत्मा को कचोटती
रातों से
उस वैश्या को
मिलेगी मुक्ति

लगता है प्रकृति
आनंद से
प्रफुल्लित हो
स्वयं को गर्वित
करेगी महसूस एक दिन

लगता है
भीगे चने के दाने
फिर से
शारीरिक ऊर्जा का
स्रोत होंगे

लगता है
फिर से
पावन होकर
इठलाएंगी नदियाँ

लगता है
मानसिक कुपोषण
पर लग रहा ग्रहण
एक दिन
सुसंस्कृत विचारों से
पोषित करेगा
मानव को , इस युवा पीढ़ी को

लगता है
भोर फिर से
पक्षियों की चहचहाहट से
खुद को
करेगा रोशन

लगता है
विदेशों में
बस रही
युवा पीढ़ी को
सताएगी
एक दिन
माँ की याद

लगता है
इन चीरहरण के
अनैतिक  दौर से
मिलेगी निजात

लगता है
मानव को
मानव होने का शीघ्र ही
होगा आभास

लगता है
शीघ्र ही होगा
यह सब कुछ
शीघ्र ही ................

  

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