लगता है मेरे स्वप्न को
लगता है
मेरे स्वप्न को
आसमां का मिलेगा सहारा
लगता है
उस पंक्षी को
प्यास से मिलेगी निजात
लगता है
केवल दो बूँद जल
होगा
जीवन का पर्याय
आत्मा को कचोटती
रातों से
उस वैश्या को
मिलेगी मुक्ति
लगता है प्रकृति
आनंद से
प्रफुल्लित हो
स्वयं को गर्वित
करेगी महसूस एक दिन
लगता है
भीगे चने के दाने
फिर से
शारीरिक ऊर्जा का
स्रोत होंगे
लगता है
फिर से
पावन होकर
इठलाएंगी नदियाँ
लगता है
मानसिक कुपोषण
पर लग रहा ग्रहण
एक दिन
सुसंस्कृत विचारों से
पोषित करेगा
मानव को , इस युवा पीढ़ी को
लगता है
भोर फिर से
पक्षियों की चहचहाहट से
खुद को
करेगा रोशन
लगता है
विदेशों में
बस रही
युवा पीढ़ी को
सताएगी
एक दिन
माँ की याद
लगता है
इन चीरहरण के
अनैतिक दौर से
मिलेगी निजात
लगता है
मानव को
मानव होने का शीघ्र ही
होगा आभास
लगता है
शीघ्र ही होगा
यह सब कुछ
शीघ्र ही ................
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