Wednesday, 4 November 2015

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा
ये दुनिया तेरी  मायाजाल है , कोई नहीं इंसान यहाँ

जो चीरहरण का हिस्सा हैं, उन्हें तेरा पता क्या मालूम होगा
जो  बहा रहे हैं खून, उनका तुझसे क्या कोई नाता होगा

रिश्तों को जो कर रहे हैं तार – तार, वो बता सकेंगे क्या ठिकाना तेरा
धर्म की राजनीति करने वालों को , क्या तेरे दर का पता होगा

अप्राकृतिक कृत्यों में लिप्त, मानव चरित्रों को क्या तुझसे कोई सरोकार होगा
इस लोक को जो न स्वर्ग समझे, परलोक उनका क्या सार्थक होगा

आधुनिक विचारों से पोषित चरित्रों को, सामाजिकता से क्या सरोकार होगा
तिलांजलि दे रहे आदर्शों को जो चरित्र, उनका संस्कारों से क्या कोई नाता होगा

कुविचारों का कर रहे जो समर्थन, क्या उनका आदर्शों से कोई लगाव होगा
संस्कृति जिनके जीवन में मायने नहीं रखती , उनका जीते जी क्या हश्र होगा

सात्विक विचारों में नहीं रूचि उनकी, उनके जीवन का अंत कैसा होगा
मर्यादाओं में बंधकर रहना जिनको मंज़ूर नहीं , उनके जीवन में क्या खुशबुओं का कोई मंज़र होगा

अभिनन्दन की राह जिनको नहीं भाती, उनका जीवन क्या उत्कर्ष से भरा होगा
इबादत जिनके दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं, क्या उन्हें खुदा से कोई सरोकार होगा

आत्मीयता जिनके चरित्र को नहीं भाती , क्या सत्मार्ग से उनको कोई सरोकार होगा
संवेदनहीनता को बना लिया जिन्होंने अपने जीवन का सबब, क्या मानवता उनके जीवन का धर्म होगा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा
ये दुनिया तेरी  मायाजाल है , कोई नहीं इंसान यहाँ

जो चीरहरण का हिस्सा हैं, उन्हें तेरा पता क्या मालूम होगा
जो  बहा रहे हैं खून, उनका तुझसे क्या कोई नाता होगा







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