Tuesday, 27 October 2015

अनचाही भावनाओं के बोझ तले दबे जा रहे हैं हम - मुक्तक

१.


इश्क हो जाएगा इस नदियों, जंगलों,
जीवों, पहाड़ों और झरनों से

एक बार इन प्रकृति की वादियों को
मन की आँखों स॑ निहारकर तो देख


२.


इत्तफाक भी इत्तफाकन जिन्दगी का
हिस्सा नहीं होते

इश्क हमारी जिन्दगी में य॑ ही
मुहब्बत के रस नहीं घोलते

3.


अनचाही भावनाओं के बोझ तले दबे
जा रहे हैं हम

यूं ही एक दूसरे को गुमराह किये जा
रहे हैं हम

4.

आधुनिक विचारों के गुलाम होते जा
रहे हैं हम

ये. किस  मुकाम की तलाश किये जा
रहे हैं हम

5.


इश्के  -इबादत नैमत खुदा की ठुकरा
रहे हैं हम  

नायब जिन्दगी को मोबाइल, इंटरनेट
की भेंट चढ़ा रहे हैं हम

६.


चश्मों - चिराग उस खुदा के हो
जायेंगे हम

-इंबादत को गर इमाने - मजहब
बनायेंगे हम


7.

आतंक को मुजाहिद के नाम का
अमलीजामा पहना रहे हैं जो

अफ़ेसोस हो रहा मुझे 
उनकी तालीम पर



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