Thursday, 28 February 2013

सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?


सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?

सत्य पथ अब
पथ विहीन क्यों ?
सत्य राह
चंचल हुई क्यों
सत्यमार्ग
सूझता नहीं क्यों
असत्य सत्य पर
भारी है क्यों ?
कर्म धरा अब
चरित्र विहीन महसूस हो रही
शोर्टकट लगता
अब प्यारा क्यों ?
कर्महीन महसूस होता 
हर एक चरित्र क्यों ?
नारी अपनी व्यथा पर
समाज में
रोती है क्यों ?
पुरुष समाज में
अपनी छवि
खोता सा
दिखता है क्यों
धर्म पथ पर
काम पथ का
प्रभाव पड़ता सा
दिखता है क्यों ?
शर्मिंदगी की घबराहट
अब अनैतिक
चरित्रों के चहरे पर
झलकती नहीं है क्यों ?
धर्म्कांड व कर्मकांड
के नाम पर
परदे के पीछे
काम काण्ड की
महिमा गति
पकड़ रही है क्यों ?
फूलों में अब
पहली सी
खुशबू रही नहीं है क्यों ?
उलझा – उलझा
परेशान सा
हर एक चरित्र
महसूस
हो रहा है क्यों ?
मानवता
गली – गली
आज शर्मशार
हो रही है क्यों ?
आज नारी
हर दूसरे चौक पर
बलात्कार का शिकार
हो रही है क्यों ?
युवा पीढ़ी
आज की
पथभ्रष्ट
हो रही है क्यों ?
समाज में
आज
वृद्ध आश्रमों की
संख्या में
बढ़ोत्तरी
हो रही है क्यों ?
पल –पल होती लूट
और हत्याओं की
घटनाओं से
मानव रूबरू हो
रहा है क्यों ?
आज प्रकृति
अपने विकराल
रूप में
हमारे सामने
आ खड़ी हुई है क्यों ?
सुनामी – कैटरीना
भूकंप , ज्वालामुखी
के शिकार
मानव हो रहे है क्यों ?
वर्तमान सभ्यता
आज
अपने अंत के
द्वार पर खड़ी  हुई है क्यों ?
द्वार पर खड़ी  हुई है क्यों ?
द्वार पर खड़ी  हुई है क्यों ?

         



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