Wednesday, 21 July 2021

तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं - ग़ज़ल

तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं - ग़ज़ल 


तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं 

तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |


जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये 

अपने ज़ख्मों  को सी रहा हूँ मैं |


इक तेरे दीदार की आरज़ू है, मेरा मकसद 

अपने दरवाजे की चौखट पर , निगाह लगाए बैठा हूँ मैं |


तेरी एक मुस्कराहट ने जगाई थी ,  एक उम्मीद मुझमे

तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं |


तुझे परवाह है अपनी, और अपनों की 

तेरी चाहत में खुद को , फ़ना कर रहा हूँ मैं |


पीर दिल की मिटा जा , और दिल को दे जा सुकूँ 

इस दिल के इक  - इक ज़ज्बात को पिरो रहा हूँ मैं |


तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं 

तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |


जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये 

अपने ज़ख्मों  को सी रहा हूँ मैं | |



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