Tuesday, 27 July 2021

मुक्तक

 

 मुक्तक

 

1.


जब तुम्हें रिश्तों की पावनता का बोध होने लगे

जब तुम्हें रिश्तों की मर्यादा का भान होने लगे

जब तुम्हें रिश्ते , जीवन की संजीवनी नज़र आने लगें

तब समझना कि तुम्हारे भीतर सामाजिकता का बीज,  अंकुरित होने लगा है ||

 

2.


जब तुम्हें किताबों से मुहब्बत होने लगे

जब पुस्तकों के विचार , तुम्हारे जीवन को दिशा देने लगें

जब किताबों की दुनिया ही , तुम्हारे जीवन का आधार महसूस होने लगे

तब समझना कि मंजिल की अग्रसर होने से , कोई तुम्हें रोक नहीं सकता ||

 

3.


जब घर  - घर न होकर आशियाँ सा लगने लगे

घर के लोगों में , सामंजस्य बनाने लगे

श्रद्धा और सबूरी से , हर शख्स अलंकृत होने लगे

तब समझना तुम्हारा घर ही देवालय में परिणित हो चुका है ||

 

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