मुक्तक
जब तुम्हें रिश्तों की पावनता का
बोध होने लगे
जब तुम्हें रिश्तों की मर्यादा का
भान होने लगे
जब तुम्हें रिश्ते , जीवन की
संजीवनी नज़र आने लगें
तब समझना कि तुम्हारे भीतर
सामाजिकता का बीज, अंकुरित होने लगा है ||
जब तुम्हें किताबों से मुहब्बत होने
लगे
जब पुस्तकों के विचार , तुम्हारे
जीवन को दिशा देने लगें
जब किताबों की दुनिया ही , तुम्हारे
जीवन का आधार महसूस होने लगे
तब समझना कि मंजिल की अग्रसर होने
से , कोई तुम्हें रोक नहीं सकता ||
जब घर - घर न होकर आशियाँ सा लगने लगे
घर के लोगों में , सामंजस्य बनाने
लगे
श्रद्धा और सबूरी से , हर शख्स अलंकृत
होने लगे
तब समझना तुम्हारा घर ही देवालय में
परिणित हो चुका है ||
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