Tuesday, 27 July 2021

तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

 

तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

 

तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

 

हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

 

अपना समझना , सदा ही मुझको

पीर मेरी , फ़ना हो रही है |

 

तेरे दीदार की, आरज़ू है मुझको

हैं आसपास महसूस करता हूँ तुझको |

 

तेरे करम का , साया है मुझ पर

तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

 

गीत बनकर रोशन हो जाऊं मैं

ग़ज़ल बनकर निखर जाऊं मैं

 

ज़ज्बा हो इंसानियत का मुझमे

पीर सबके दिलों की मिटाऊँ मैं

 

तेरे करम से रोशन हुई कलम मेरी

तेरी इबादत को अपना मकसद बना लूं मैं

 

तेरा शागिर्द हूँ , नाज़ है मुझको तुझ पर

तेरे दर का चराग कर लूं खुद को

 

मेरे मुकद्दर पर , हो तेरी इनायत और करम

तेरी इबादत में खुद को फ़ना कर लूं मैं |

 

तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

 

हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

 

तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

 

तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

 

सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ |

 

सुना है संवेदनाओं के समंदर में है , तेरा ठिकाना

चीरहरण की कथाओं में , तुझे ढूंढता हूँ |

 

कहीं दिल के कोने में, है तेरी कुटिया |

मंदिर, मस्ज़िद, चर्च में तुझे ढूंढता हूँ |

 

नन्ही परी कूड़े के ढेर का हिस्सा हो गयी

माँ के मातृत्व में तुझे ढूंढता हूँ |

 

सुना है सलिला के कल  - कल में बसता है तू

प्रकृति के कण  - कण में तुझे ढूंढता हूँ |

 

लाखों घर हुए सूने, हज़ारों गोद हो गयीं सूनी

कोरोना की इस भीषण त्रासदी में तुझे ढूंढता हूँ |

 

उसने पुकारा तुझे बार – बार , फिर भी नोच ली गयीं उसकी आंतें

उस निर्भय की चीखों, उन दरिंदों की भयावह आँखों में तुझे ढूंढता हूँ |

 

लहरों में समा गयी थी , वो मुस्कराते  - मुस्कराते

सामाजिकता में, रिश्तों की भयावहता में तुझे ढूंढता हूँ |

 

सह नहीं पाया वो आघात, अपनी बेटी के दुःख का

दहेज़ के लालची चरित्रों की निकृष्ट सोच में तुझे ढूंढता हूँ |

 

तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

 

सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ |

पुस्तकों का आश्रय पाकर

 

पुस्तकों का आश्रय पाकर

 

पुस्तकों का आश्रय पाकर

तुम जो चाहे बन सकते हो |

 

चीर कर अज्ञान के तम को

ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो |

 

संस्कारों की पूँजी पाकर

तुम जो चाहे बन सकते हो |

 

चीरकर आधुनिकता की बेड़ियाँ

आदर्श राह पर बढ़ सकते हो |

 

आदर्शों की पूँजी लेकर

तुम जो चाहे बन सकते हो |

 

चीर कुविचारों की बेड़ियाँ

सच की राह पर बढ़ सकते हो |

 

आध्यात्म का आश्रय लेकर

तुम जो चाहे कर सकते हो |

 

चीर भौतिक सागर की लहरों को

मोक्ष मार्ग पर बढ़ सकते हो |

 

पुस्तकों का आश्रय पाकर

तुम जो चाहे बन सकते हो |

 

चीर कर अज्ञान के तम को

ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो |

 

मुक्तक

 

 मुक्तक

 

1.


जब तुम्हें रिश्तों की पावनता का बोध होने लगे

जब तुम्हें रिश्तों की मर्यादा का भान होने लगे

जब तुम्हें रिश्ते , जीवन की संजीवनी नज़र आने लगें

तब समझना कि तुम्हारे भीतर सामाजिकता का बीज,  अंकुरित होने लगा है ||

 

2.


जब तुम्हें किताबों से मुहब्बत होने लगे

जब पुस्तकों के विचार , तुम्हारे जीवन को दिशा देने लगें

जब किताबों की दुनिया ही , तुम्हारे जीवन का आधार महसूस होने लगे

तब समझना कि मंजिल की अग्रसर होने से , कोई तुम्हें रोक नहीं सकता ||

 

3.


जब घर  - घर न होकर आशियाँ सा लगने लगे

घर के लोगों में , सामंजस्य बनाने लगे

श्रद्धा और सबूरी से , हर शख्स अलंकृत होने लगे

तब समझना तुम्हारा घर ही देवालय में परिणित हो चुका है ||

 

हर एक बंदा है व्यस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त

अपनी ही दुनिया में मस्त

कोई whatsapp पर व्यस्त

तो कोई facebook में व्यस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त  

 

कोई twitter पर है व्यस्त

तो कोई instagram में मस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

किसी को internet surfing है भाये

तो कोई social chatting में व्यस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

किसी को youtube है भाये

तो कोई blog पर किस्मत आजमाए

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

कोई busy है games में

तो कोई online किस्मत आजमाए

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

किसी को like की चिंता

तो कोई comments को लेकर है मस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

कोई tiktok video बनाए

कोई like app पर चाहए

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

कोई dirty minds पर कर रहा परीक्षण

तो कोई funny videos में मस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

कोई recipe बनाना सीखे

तो कोई dance videos में मस्त

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

internet की दुनिया निराली

फिर क्यों देते हैं इसे गाली

 

क्यों न हम कुछ कर दिखाएँ

internet की दुनिया पर छायें

 

चलो कुछ websites बनायें

youtube channel सजाएं

 

blogs का संसार सजाकर

लोगों से खुद का परिचय कराएं

 

चंद गीतों के video बनाएं

कुछ dance के video सजाएं

 

करें हम सबका मनोरंजन

चलो income का source बढ़ाएं

 

चलो अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँ

चलो internet पर छा जाएँ

 

movies की महफ़िल सजाएं

हम भी celebrity हो जाएँ

 

करें हम भी अपलोड videos

funny funny moments सजाएँ

 

लोगों हम मिल हंसाएं

खुशियों का अम्बर सजाएं

 

चलो internet पर छ जाएँ

चलो एक नया आशियाँ सजाएं

 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

हर एक बंदा है व्यस्त, अपनी ही दुनिया में मस्त 

 

तन समर्पित , मन समर्पित

 

तन समर्पित , मन समर्पित

 

तन समर्पित , मन समर्पित

और ये जीवन समर्पित

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

 

रक्त का एक  - एक कण समर्पित

साँसों का एक  - एक पल समर्पित

करता मैं तुझको हूँ अर्पित

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

 

राष्ट्र प्रेम भावना समर्पित

गीतों की माला समर्पित

संस्कारों की माला भी अर्पित

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

 

सत्कर्म हैं तुझको समर्पित

आदर्शों की माला भी अर्पित

सुप्रयासों की माला भी अर्पित

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

 

प्रीत तुझसे , मोह तुझसे

साँसों की हर डोर तुझसे

सुविचारों की माला है अर्पित

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

 

मादरे वतन , ये बता

और क्या अर्पित करूं मैं

Thursday, 22 July 2021

मुक्तक

 1.


जब तुम्हें प्रेम की पावनता का , बोध होने लगे 

जब तुम्हें प्रेम की सात्विकता का , भान होने लगे 

जब तुम्हें अपनी प्रियतमा में , आत्मिक प्रेम होने लगे 

तब समझना तुम प्रेम रुपी परमेश्वर की अराधना में , लीन होने लगे हो ||


2.


जब तुम प्रत्येक कर्म को पवन समझने लगो 

जब तुम्हारी प्रत्येक कर्म में प्रीति होने लगे 

जब प्रत्येक कर्म को , तुम पूजा की तरह पूजने लगो 

तब समझना कि तुम पर माँ शारदे की अनुपम कृपा है ||



मुक्तक

 1.


जब तुम्हारे प्रयास , सफल होने लगें 

जब तुम्हारी कोशिशों को, दिशा प्राप्त होने लगे 

जब तुम सफ़लता की , सीढियां चढ़ने लगो 

तब समझना , मंजिल तुम्हारे कदम चूमने लगी है ||


2.


जब तुम्हारा अंतर्मन , सच और झूठ का अंतर समझने लगे 

जब तुम्हारी अंतरात्मा सत्य का वरण करने लगे  

जब तुम्हारे नेत्र निश्छल हो जाएँ 

तब समझना तुम पूर्ण मानव बनने की दिशा में अग्रसर हो ||




कहाँ मिलेंगे उसके क़दमों के निशाँ

कहाँ मिलेंगे उसके क़दमों के निशाँ 


कहाँ मिलेंगे , उसके क़दमों के निशाँ 

कहाँ नज़र आयेंगे , उसकी उपस्थिति के निशाँ |


किस आकृति में उसने , स्वयं को किया होगा अवस्थित 

किस रंग रूप में उसने , स्वयं को किया होगा पोषित |


कोई कहता है , ईश्वर मानव मन में अवस्थित 

कोई कहता है ईश्वर , मानव रूप में अवस्थित |


कहते हैं प्रेम की अनुभूति में , ईश्वर का एहसास 

प्रकृति का कण  - कण , उसके एह्सास से  प्रफुल्लित |


सलिला के कल  - कल निनाद में , उसकी अनुभूति 

मंदिर के घंटे की ध्वनि और शंखनाद में उसका आभास |


पंछियों के मधुर स्वर में , उसकी अनुभूति 

श्रद्धा और सबूरी में उसकी उपस्थिति का एहसास |


आध्यात्मिक सोच में , उसकी उपस्थिति की अनुभूति 

इस धरा की प्रत्येक कृति में , उसका एहसास |


उसकी प्रत्येक अनुभूति पर , सर्वस्व समर्पित 

उसके प्रत्येक एहसास और अनुभूति को , वंदन और नमन |


कहाँ मिलेंगे , उसके क़दमों के निशाँ 

कहाँ नज़र आयेंगे , उसकी उपस्थिति के निशाँ |


किस आकृति में उसने , स्वयं को किया होगा अवस्थित 

किस रंग रूप में उसने , स्वयं को किया होगा पोषित | |

Wednesday, 21 July 2021

हमने जिन्दगी में कभी रात का अँधेरा , तो कभी सुबह का उजाला देखा है

 हमने जिन्दगी में कभी रात का अँधेरा , तो कभी सुबह का उजाला देखा है 


हमने जिन्दगी में कभी रात का अँधेरा , तो कभी सुबह का उजाला देखा है 

कभी गुमनामी का अँधेरा , कभी रोशन उजाला देखा है |


कभी बिखरे आँख के मोती , तो कभी आस के पल 

कभी अभाव की सुनामी, तो कभी किस्मत का छलावा देखा है |


इश्क़ में गुजरी चंद यादें, तो कभी चंद लम्हे 

हमने उनका रूठना , और हमारा उनको मनाना देखा है |


तरस रहे हैं सभी, उस आसमां की एक पल छाँव के लिए 

हमने नवोदित रचनाकारों की कलम को, घायल होते देखा है |


हाथ में फूलदान लिए , गाड़ियों के पीछे भागता बचपन

हमने गरीबी का अजब आलम, अजब मंज़र देखा है |


उसकी पीठ से बंधा बच्चा, और सिर पर ईटों का अंबार 

हमने दो वक़्त की रोटी की जद्दोजहद का , भयावह मंज़र देखा है |


दो वक़्त की रोटी को तरसते , लाखों परिवार 

हमने अमीरों की पार्टी में , अन्न की बर्बादी का अजब मंज़र देखा है |


बाबाओं का पाखण्ड , और उनका अनैतिक आचरण 

हमने बाबाओं को कभी नेता  , तो कभी  बिजनेसमैन होते देखा है |


नेताओं का वादा करना , और मुकर जाना 

हमने नेताओं की हरकतों का , अजब मंज़र देखा है |


हमने जिन्दगी में कभी रात का अँधेरा , तो कभी सुबह का उजाला देखा है 

कभी गुमनामी का अँधेरा , कभी रोशन उजाला देखा है |


कभी बिखरे आँख के मोती , तो कभी आस के पल 

कभी अभाव की सुनामी, तो कभी किस्मत का छलावा देखा है ||