Tuesday 5 September 2017

अपने दिल की पीर

अपने दिल की पीर

अपने दिल की पीर , ज़माने से
छुपाता रहा हूँ. छुपाता रहूँगा मैं

'बहकर आये जो नीर , अधरों तक जिनके
उन आंसुओं को चुनता रहा हूँ.. चुनता रहूँगा मैं

गरीबी के आलम में गुजारे
बरसों बरस मैंने

अपनी कलम को गरीबों की आवाज़.
बनाता रहा हूँ  बनाता रहूँगा मैं

इंसानियत से मुंह मोड़ने वालों से
पट रही ये दुनिया
मैं इंसानियत की राह पर लोगों को
लाता रहा हूँ.. लाता रहूँगा मैं

वतन परस्ती का ज़ज्बा पाले हुए हूँ
मैं अपने दिल में

लोगों के दिलों में वतन परस्ती का ज़ज्बा
जगाता रहा हूँ : जगाता रहूँगा मैं

अपने दिल की पीर , ज़माने से
'छुपाता  रहा हूँ, छुपाता रहूँगा मैं

बहकर आये जो नीर , अधरों तक जिनके
उन आंसुओं को चुनता रहा हूँ  चुनता रहूँगा मैं




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