Wednesday, 20 September 2017

जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं

इस फीकी - फीकी दुनिया में , मन जब नहीं लगता मेरा
किसी सरिता के तीर , दो चार गीत गुनगुना लेता हूँ मैं 

प्रकृति के आँचल में कांटे, लोगों ने बो दिए हैं बहुत
नन्हे पौधों से बात कर , खुद को बहला लेता हूँ मैं

चादुकारिता की बातें करते देखे हैं, मैंने कवि बहुत
बालपन को संवारने की ,कवितायें गुनगुना लेता हूँ मैं

लोगों को खुश करने के लोग, ढूंढ लेते हैं बहाने बहुत
बच्चों को खुश करने के , तरीके इजाद कर लेता हूँ मैं

मेरी बात किसी को ,जो बुरी लग जाए.
परवाह किये बिना दो चार और , कवितायें लिख देता हूँ मैं

लोग अपने दामन के फूलों की , खुशबू मे हैं व्यस्त
लोगों के दामन को , खुशबू से भर देता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं







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