भ्रम में कोई जीता क्यूं है
भ्रम में कोई जीता क्यूं है
क्यूं कर कोई आंसू पीता क्यूं है
डूबता बीच समंदर फिर भी
भ्रम मैं कोई क्यूं जीता है.
जीवन राह नहीं है आसां
जुर्म को पास बुलाता फिरता
अति विश्वास मैं डूबा रहता.
खुद पर है इतराता फिरता क्यूं है
विलासिता में डूबा रहता
भौतिक सुखपर इतराता फिरता
धर्म की राह इसे न भाती
भ्रम में ये जीता क्यूं है.
पीर पराई ये न जाने
अपने दुःख को ही दुःख माने
गिरते को ये कभी न उठाये
खुद को खुद में ही उलझाये फिर क्यूं है
भ्रम में कोई क्यूं जीता है.
क्यूं कर कोई आंसू पीता है.
डूबता बीच समंदर फिर मी
भ्रम के आसमां में उड़ता क्यूं है
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