Wednesday 20 September 2017

ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

उस खुदा की इस ,अनजान दुनिया में
लोगों को दिल के करीब लाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

न जाने क्यों कर हो रहे लोग, एक दूसरे से दूर
'रिश्तों को जीने के ,सौ बहाने ढूंढ लेत हूँ मैं

मुसीबतों के दौर मैं में ही ,याद आता है खुदा उनको
अपनी खुशियाँ उस खुदा के बन्दों से बांटने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

लोग फेर लेते हैं नज़र , न जाने क्यों अपनों से भी
'परायों को भी दिल से लगाने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

क्यों कर कोई स्ठे , इस जिन्दगी से
जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने के , सौँ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ  जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं




No comments:

Post a Comment